मअन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भव:।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञ: कर्मसमुद्भव:।। (गीता ३/१४)
अर्थ – अन्न से सब प्राणी होते हैं अर्थात् अन्न से सब प्राणी उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति मेघ से होती है, मेघ अर्थात् वर्षा यज्ञ से होती है। यज्ञ कर्म से उत्पन्न होता है।
भावार्थ – अन्न से ही वीर्य और रज बनता है इसलिए श्री कृष्ण महाराज इस श्लोक में बता रहे हैं कि समस्त प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं। परंतु यदि समय पर वर्षा ना हो, तो अकाल पड़ जाता है और प्राणी एक-एक दाने को मोहताज हो जाता है। परंतु यदि यज्ञ किए जाते हैं तो समय पर वर्षा होती है और अन्न की भी कोई कमी नहीं रहती।
गीता के इस श्लोक में श्री कृष्ण महाराज यज्ञ करने की आज्ञा दे रहे हैं और यज्ञ बिना कर्म किए सम्भव नहीं। तब ऐसे गूढ़ सत्य को स्वार्थवश प्राय: वेद विरोधी, अज्ञानी संत जनता को यज्ञ ना करने के लिए समझाते हैं कि नाम जपो, तर जाओगे।
आज यज्ञ न करने से और वेद-विरोधी संतों की बातों में आ जाने से देश में शुद्ध पानी, शुद्ध वायु, शुद्ध बुद्धि आदि सबकी कमी आ गई है।