स्वामी राम स्वरुप जी, योगाचार्य, वेद मंदिर (योल)
जो प्रयास हमारी सरकार कोरोना वाइरस को नष्ट करने के लिए कर रही है वह सराहनीय है। क्या अच्छा हो कि हम इस बीमारी से लड़ने के लिए वैदिक विज्ञान की शरण में भी जाएँ। प्रथम हमें यह जानना पड़ेगा कि वेद ईश्वर से उत्पन्न वाणी है जिसमें अनंत विद्याओं का वर्णन है अतः ईश्वर ने स्वास्थय एवं चिकित्सा सम्बन्धी विषय पर भी अत्यंत विस्तार से ज्ञान दिया है। यह कटु सत्य है कि किसी विद्वान् के आश्रय में रहकर वेदाध्ययन करने के पश्चात् ही समझ में आता है. अथवा वेदों पर श्रद्धा रखी जाती है। चिकित्सा सम्बन्धी विषय पर जब विचार किया जाता है तो विद्वानों का कथन है कि वर्तमान में भी जो कुछ चिकित्सा सम्बन्धी जानकारी हुई है उसका वर्णन पहले से ही वेदों से है अर्थात् प्रत्येक विद्या जिसमें चिकित्सा सम्बन्धी विद्या भी है और अन्य अनंत विद्याओं का प्रकाश ईश्वर ने वेदों में किया है परन्तु दुःख है आज मनुष्य वेद विद्या त्यागकर दुखी है।
करोना वाइरस को ही लीजिये जिसका कहर आज लगभग सभी देशों में बरस रहा है और भारतवर्ष भी इससे अछूता नहीं है। इस वाइरस को नष्ट करने के लिए यदि सभी राष्ट्र मिलकर अथवा हमारा देश ही अकेला यजुर्वेद मंत्र १/२ पर ध्यान दें। मंत्र में जो भी उपदेश है उसे पूर्ण श्रद्धा से अध्ययन मनन द्वारा जीवन में धारण कर लें – अर्थात् यज्ञ करना प्रारम्भ कर दें तो हमारे देश सहित कई अन्य देशों को भी इस बीमारी से छुटकारा निश्चित है।
ओ३म् वसोः पवित्रमसि द्यौरसि पृथिव्यसि मातरिश्वनो घर्मोऽसि विश्वाधाऽअसि परमेण धाम्ना दृँहस्व मा ते ह्वार्मा यज्ञपतिह्वार्षीत्। (यजुर्वेद १/२)
ऊपर लिखे मंत्र का भावार्थ है:
वसोः पवित्रमसि अर्थात् यज्ञ करने से पवित्रता फैलती है. द्यौरसि पृथिव्यसि अर्थात् यज्ञ करते समय जो हवन सामग्री और घृत आदि हवन कुण्ड में जलती हुई अग्नि में आहुति के रूप में श्रद्धा से डाला जाता है उस पदार्थ को अग्नि परमाणुओं से भी सूक्ष्म कणों में भी विभाजित करके सूर्य की किरणों में स्थिर करके वायु के साथ मिलकर देश-देशान्तरों में फैलने वाला है। इस प्रकार जब वे सूक्ष्म तत्त्व सूर्य की किरणों और वायु द्वारा ब्रह्माण्ड में फैल जाते हैं तो मातरिश्वनो घर्मोऽसि हर प्रकार से आकाश की समस्त वायु को शुद्ध करता है। इस से सभी प्रकार की बीमारियां का नाश होता है। आगे कहा – यज्ञ संसार को सुख देने वाला और संसार का धारक है. अतः कहा परमेण धाम्ना यज्ञ उत्तम सुख सहित लोक के साथ बढ़ता है।
परमेश्वर ने पुनः आदेश दिया मा ह्वा: अर्थात् कोई भी मनुष्य यज्ञ का त्याग न करे। ते यज्ञपति: मा ह्वार्षीत् अर्थात् यज्ञमान, विद्वान् और प्रजा यज्ञ करना कभी न छोड़े। तो यह ईश्वर की आज्ञा वेदों में अनादि काल से चली आ रही है। वेद न सुनने के कारण जनता इस आज्ञा को भूल गयी है और यज्ञ किये बिना दुःख के सागर में डूब गयी। क्योंकि यजुर्वेद मंत्र २/२३ में ईश्वर ने स्पष्ट कहा कि जो मेरा यज्ञ करना छोड़ देता है मैं (ईश्वर) उसे सदा दुःख देने के लिए छोड़ देता हूँ। आज दुनिया ने यज्ञ छोड़ा और दुखी है।