ओ३म् तुभ्यं हिन्वानो वसिष्ट गा अपोऽधुक्षन्त्सीमविभिरद्रिभिर्नरः। पिबेन्द्र स्वाहा प्रहुतं वषट्कृतं होत्रादा सोमं प्रथमो य ईशिषे॥ (ऋग्वेद मंत्र २/३६/१) हम चाहे गरीब घर में पैदा हो चाहे अमीर घर में, हमें आध्यात्मिक उन्नति करके गरीबी-अमीरी का फर्क मिटाना...
अन्न दान कितना महान है। यह चलता रहे। जितने भी यहाँ आए वह भोजन करके जाएं। जो ना आ सके उनके लिए भी लेकर जाएँ। जो दूर रहते हैं उनके लिए घर भी ले जाओ। ओ३म् धारावरा मरुतो धृष्ण्वोजसो मृगा न भीमास्तविषीभिरर्चिनः। अग्नयो न शुशुचाना ऋजीषिणो भृमिं धमन्तो अप...
इस मंत्र का भाव है कि जैसे जैसे पहले जमाने में राजा चारों वेदों के ज्ञाता होते थे और प्रजा के लिए प्रबंध भी करते थे और खुद भी उपदेश करते थेI उपनिषद में सच्ची कथा आती है कि एक ब्राह्मण के घर में अग्नि खत्म हो गईI जैसे वाल्मीकि रामायण में आया कि न निरग्निः – ...
By Swami Ram Swarupji, Yogacharya Birth, thereafter death; after death, rebirth based on pious or unpious deeds, this is an eternal and everlasting Prakriti made cycle. You see, if sun does not rise, naturally, the day will be covered with intense darkness. Knowledge...
By Swami Ram Swarupji, Yogacharya God is seer of past, present and future. So, he also knows the mind and intellect of all human-beings. In this regard, God preaches in Rigved mantra 10/71/4 that one person is he who although sees the literal vedvanni yet ignores it...