स्वामी राम स्वरूप जी, योगाचार्य, वेद मंदिर (योल) (www.vedmandir.com)
इन्द्रावरुणा युवमध्वराय नो विशे जनाय महि शर्म यछतम् |
दीर्घप्रयज्युमति यो वनुष्यति वयं जयेम पृतनासु दुढय:|| (ऋग्वेद ७/८२/१)
अर्थ – (दु: धय:) दुर्बुद्धि लोग जो (पृतनासु) युद्धों में (यः) जो (वनुष्यति) अनुचित व्यवहार द्वारा जीतने की इच्छा करते और (दीर्घप्रयज्युम्) प्रयोग न करने योग्य पदार्थों का (अति) प्रयोग करते हैं उनको (वयं, जयेम) हम जीतें (इन्द्रावरुणा) इंद्र हे अध्यापक अर्थात् आचार्य और वरुणा का अर्थ है उपदेशक (युवम्) आप दोनों (नः) हमारे (अध्वरा) संग्राम रूपी यज्ञ – अध्वरा का अर्थ है कि यज्ञ में हिंसा हो और (विशे, जनाय) प्रजा जनों के लिए (महि शर्म) महि का अर्थ है बहुत बड़ा, शर्म का अर्थ है शांतिकारक साधन अर्थात् आप हमें बड़ा शांतिकारक साधन (यछतम्) दें, जिससे हम विजय प्राप्त कर सकें|
परमात्मा का मंत्र में उपदेश है कि हे मनुष्यो! आप यज्ञ में उन शत्रुओं को जीतें जो युद्ध में प्रयोग न करने वाले शस्त्र आदि का प्रयोग करते हैं| वेदों में योद्धाओं को आमने-सामने लड़ने और बल प्रदर्शन करने का आदेश दिया है| इस आदेश का पालन महाभारत युद्ध तक हुआ| महाभारत काल के युद्ध के पश्चात् द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने पांडवों पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था इस पर व्यास मुनि नाराज हुए थे और अश्वत्थामा को डाँटा था और ब्रह्मास्त्र वापिस लिया गया था| परन्तु वर्तमान में हिरोशिमा पर हाइड्रोजन बम और न्यूक्लियर बम इत्यादि का युद्ध में प्रयोग वेदानुसार वर्जित है| दूसरा हम अपने आध्यात्मिक गुरू से शांति कायम करने की शिक्षा लें और दूसरा जो युद्ध में उपदेश करने वाले सेनापति आदि हैं उनसे भी युद्ध की शिक्षा लेकर युद्ध लड़ें और अशांति फैलाने वाले शत्रुओं का नाश करके शांति स्थापित करें|
वर्तमान में भी जो कोरोना वाइरस फैलाया गया है उसे फैलाना नहीं चाहिए था| मंत्र में राजधर्म का उपदेश है|