स्वामी राम स्वरूप जी, योगाचार्य, वेद मंदिर (योल) (www.vedmandir.com)
ऊपर लिखे वाक्य का सीधा सा अर्थ है कि ईश्वर के समान दूसरा कोई और ईश्वर नहीं है, परन्तु ईश्वर से कम शक्ति वाला जगत् है और प्राणी विद्यमान है। जैसे कोई कहे की इस अखाड़े में बलवान सिंह जैसा कोई पहलवान नहीं परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि बलवान सिंह से कम ताकतवाले और पहलवान नहीं हैं, वो तो होंगे ही तो हम ऊपर से वाक्य का यह गलत अर्थ न निकालें कि यहाँ केवल ईश्वर ही ईश्वर है और ईश्वर के अतिरिक्त कोई जगत् या प्राणी आदि नहीं है। अथर्ववेद मंत्र १३/४(२)/१६,१७,१८ में स्पष्ट किया है कि ईश्वर एक ही था, एक ही है और एक ही रहेगा।
अथर्ववेद मंत्र १३/४(२)/१६,१७,१८ में कहा –
न द्वितीयो न तृतीयश्चतुर्थो नाप्युच्यते। य एतं देवमेकवृतं वेद।।
न पञ्चमो न षष्ठः सप्तमो नाप्युच्यते। य एतं देवमेकवृतं वेद।।
नाष्टमो न नवमो दशमो निप्युच्यते। य एतं देवमेकवृतं वेद।।
अर्थ: परमेश्वर को (न) ना (द्वितीय:) दूसरा (न) ना (तृतीय:) तीसरा (न) ना (चतुर्थ:) चौथा (अपि) ही (उच्यते) कहते हैं।
परमेश्वर को (न) ना (पञ्चमः) पाँचवा (न) ना (षष्ठः) छठा, (न) ना (सप्तमः) सातवाँ (अपि) ही (उच्यते) कहते हैं। परमेश्वर को (न) ना (अष्टमः) आठवाँ: (न) ना (नवम:) नवाँ (न) ना (दशमः) दसवाँ (अपि) ही (उच्यते) कहते हैं। अतः इस जगत का और जीवात्माओं का स्वामी एक ही परमेश्वर है। इससे अन्य कोई और परमेश्वर नहीं है।
यजुर्वेद मंत्र २७/३६ का भाव है कि – न जातः न जनिष्यते कि हे परमेश्वर! तेरे समान न कोई उत्पन्न हुआ है और न भविष्य में कभी उत्पन्न होगा। अतः हम स्वयं निर्मित अनेक परमेश्वर होने और उनकी पूजा करने की कल्पना भी नहीं कर सकते।