Upendra: प्रणाम स्वामी जी, गुरु जी यदि कोई गलती से हमे जल सिंचन किया हुआ जल हमे आचमन के लिए दे और हम गलती से उस जल से आचमन कर लें। तो गलती से ऐसा करने से क्या हमारा यज्ञ का पुण्य खत्म हो जाएगा। मेरी छोटी sister ने मुझे गलती से जल सिंचन किया हुआ जल आचमन करने को दे दिया...
यज्ञ का पूरे विश्व को लाभ है। जिन्होंने यज्ञ रखा है उनको और भी ज्यादा लाभ है। अथर्ववेद में यह ज्ञान दिया गया है कि जो यज्ञ की दक्षिणा नहीं देता उसका यज्ञ कराने का और आहुतियों का पुण्य खत्म हो जाता है। मेरा कोई ऐसा बेटा-बेटी नहीं है जो दक्षिणा नहीं देता है। इसलिए...
यह बड़ा सुंदर ज्ञान है। जो विद्वान होते हैं, सब का पालन करते हैं और सारे संसार में पूजनीय होकर सत्कर्म करते हैं। आप लोग विचार करें और मैं भी विचार करता हूं कि तीसरे मंडल में भी ज्यादातर विद्वान के ही गुण चल रहे हैं। अगर विद्वान नहीं होंगे तो...
Ajay: Who I am? Why I am here in this world? Swami Ram Swarup: We all human-beings are the purest souls, not body. According to Rigved mantra 10/135/1, 2, we all have been blessed with human body by God to face the result of our previous lives’ deeds in the shape of...
ऋषियों की उत्तम अवस्था के दर्शन से कई जन्मों के पाप मिट जाते हैं। ओ३म् उतो पितृभ्यां प्रविदानु घोषं महो महद्भ्यामनयन्त शूषम्। उक्षा ह यत्र परि धानमक्तोरनु स्वं धाम जरितुर्ववक्ष॥ (ऋग्वेद मंत्र ३/७/६) हे मनुष्य! जैसे यह ब्रह्मचारी लोग अपने आचार्य की सेवा...
गायत्री मंत्र को बोलने में आलस्य नहीं होना चाहिए, जितनी बार भी बोला जाता है। ईश्वर सभी को सुनता है इसलिए इसको भी सुनता है। जिस दिन कर्मों के हिसाब से इस गायत्री मंत्र की प्रार्थना को स्वीकार कर देगा तो आलोकिक बुद्धि हो जाएगी। यही तो इसमें...
ईश्वर से यह प्रार्थना है कि वह यज्ञ को पूर्ण करें। संसार को तो मैं कब का त्याग चुका हूँI बस, धर्माचरण हैI शिष्यों की देखभाल करनी हैI बरसों से हम अंदर ही हैंI पहले भी केवल यज्ञ के लिए ही बाहर आते थेI ओ३म् आ याह्यग्ने समिधानो अर्वाङिन्द्रेण देवैः सरथं तुरेभिः। ...
एक मंत्र रोज जरूर सुना करो। यह भगवान ने जो ज्ञान दिया कि जो मनुष्य माता पिता के साथ अच्छे कर्म करता है, जो मनुष्य विद्वान के जैसे कर्म करता है.. यहाँ यह ज्ञान है कि विद्वान की तरह जब कर्म करेगा उसको विद्वान से ज्ञान मिलेगा। विद्वान तो आचरण को मानते हैं। जो आप...
ओ३म् स रोचयज्जनुषा रोदसी उभे स मात्रोरभवत्पुत्र ईड्यः। हव्यवाळग्निरजरश्चनोहितो दूळभो विशामतिथिर्विभावसुः॥ (ऋग्वेद मंत्र ३/२/२) ईश्वर ने यहां यह ज्ञान दिया है कि ब्रह्मचर्य रखकर विद्या और सुशिक्षा प्राप्त करो। ब्रह्मचर्य पर बड़ा ध्यान रखो। जो पुस्तक मैंने...