मंत्र का चिंतन करते हैं। (वृषणा) विद्या का दान देने वाले, विद्या बरसाने वाले नारी या पुरुष, बलवान् (अश्विना) यह बहुवचन में है तो नारी या पुरुष। यह जो पूर्व के विद्वानों ने जो तुम्हारे लिए रास्ता बनाया। अभी मैंने लेख में ‘यं ते पूर्वं पिता हुवे’ (ऋग्वेद मन्त्र १/३०/९) का संदर्भ डाला।
कोई तुमसे पूछे कि तुम किसकी पूजा करते हो, तो उत्तर है कि हमारे पूर्व के पितर जिस मार्ग पर चलते थे, वही रास्ता है। पूर्व के पितर वे चार ऋषि है जिन्हे सृष्टि के आरम्भ में वेदों का ज्ञान दिया गया था। स एष पूर्वेषामपि गुरु: कालेनानवच्छेदात् (योग शास्त्र १/२६) में भी आया है कि भगवान् उन पूर्व ऋषियों का भी गुरु है। आप लोग बहुत सारे देव योनि में हैं। इसको समझना चाहिए और समझते रहो। मैं जो वेदों से आपको शिक्षा देता आ रहा हूँ, बीच में कहीं मंत्र निकले हैं, उन्होंने यहां तक कह दिया है कि “कुछ नहीं, कुछ नहीं। ब्रह्म को पाओ, मोक्ष को पाओ। आजकल तो वैसे भी कुछ नहीं है हर तरफ देखेंगे तो भौतिकवाद ही है। भौतिकवाद में सारा आध्यात्मिकवाद दब गया है। आप समझ ही नहीं सकते की दुनिया पर भौतिकवाद कैसा छा गया है।
50 साल के बाद संसार की सब सुखों की इच्छा छोड़नी है। सुखों की इच्छा छोड़नी है, सुख नहीं। इच्छा छोड़ो, साधारण रहो, कोई कामना मत करो। ईश्वर ने इस संसार को बनाया है, इसमें जो कुछ बनाया है, हमें यह नहीं चाहिए। हम इससे मुँह मोड़ लेते हैं, यह वैराग्य है। तब तक ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा’ (यजुर्वेद ४०/१) प्रैक्टिस करना है। तो गृहस्थ में रहते हुए संसार के चमक दमक से दूर रहो। कम से कम 50 साल के बाद तो पीछे हटना शुरू करो।
आज तक सब विद्या को बरसाने वाले ऋषि मुनि वेदों से निर्धारित हुए पराक्रम युक्त कर्म नर और नारी को देते आ रहे हैं। इंसान की मजबूरी है कि वे काम क्रोध आदि में घुसे पड़े हैं। कइयों की नीति गड़बड़ है, तो आत्मज्ञान को पीछे धकेल देते हैं। आत्मज्ञान पर चलकर भौतिकवाद की इच्छा करते हैं। हमारे पूर्व के योगी, ऋषियों ने जो पराक्रम-युक्त कर्म निर्धारित किए हुए हैं गृहस्थ के, सन्यास के इत्यादि तो हे विद्या के बरसाने वाले ऋषि-मुनियों! उन कर्मों का प्रवचन करो, जो हमारे लिए पूर्व ऋषिओं ने कर्म नियुक्त किए हुए हैं, उनका प्रवचन करो। ईश्वर की कृपा है कि आप बार-बार वेद सुनते हो। यह रहस्य जानना चाहिए कि पूर्व ऋषियों ने जो हमारे लिए कर्म नियुक्त किए हुए उनको समझने का प्रयत्न करें और उन पर हम चले।
अगर आप युवा हो तो आपको धन और अन्न की जरूरत है। आपने वह भी अपनी शक्ति से मेहनत की कमाई कर के उत्पन्न करना है। विद्या की इच्छा वाले सेवक पुत्र और पुत्रियां हैं उनको ऋषि-मुनि यज्ञ करके ज्ञान देवें, उपदेश करें।
पूर्वाणि में बड़ा रहस्य है। यह पहले से आ रहा है। मनुष्यों ने आज जो नए रास्ते खोल दिए हैं यह वह रास्ता नहीं है। हमें पूर्व का ज्ञान चाहिए, वेद का ज्ञान चाहिए।