वेद सुनने के लिए प्रातः काल की वेला अच्छी होती है।
ओ३म् ईळे द्यावापृथिवी पूर्वचित्तयेऽग्निं घर्मं सुरुचं यामन्निष्टये। याभिर्भरे कारमंशाय जिन्वथस्ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम् ॥ (ऋग्वेद मंत्र 1/76/१)
विद्वान से और परमात्मा से प्रार्थना करो! अगर प्रार्थना नहीं करोगे तो देखो यह जीवन बर्बाद हो जाता है। प्रार्थना भी ईश्वर ने स्वयं वेद में बनाकर दी है। उसकी प्रार्थना करो – हे परमात्मा! हे विद्वान! आप कृपा करके हमारी शुद्धि के लिए हमें श्रेष्ठ बल श्रेष्ठ कर्म और श्रेष्ठ बुद्धि दीजिए।
तो हमारे बल-बुद्धि शुद्ध कैसे होंगे? ये तो प्रार्थना से होंगे। आपने यह सुना ही है कि केवल प्रार्थनाएँ काम नहीं करती है। आप यज्ञ करें, प्रयत्न करें और किसी भी विद्वान के खिलाफ कुछ ना बोले। किसी विद्वान की निंदा ना करें, माता-पिता की निंदा ना करें, बड़ों की निंदा ना करें और जो हमारी बुद्धि है, वह शुद्ध-शुद्ध बोल और श्रेष्ठ-कर्म, श्रेष्ठ-बुद्धि और श्रेष्ठ-बल हो। तो हमारे जो करम है , हम सुनते ही हैं विद्या सुनते रहे ।जो हमारे कर्म है वह शुद्ध हो अशुद्ध कर्म हम ना करें । जिससे हम आपको प्राप्त कर लें और सुखी हो जाए। क्योंकि श्रेष्ठ बुद्धि श्रेष्ठ कर्म श्रेष्ठ बल से ही ईश्वर प्राप्त होता है।
कौन मनुष्य है जो आप के बल को यज्ञ कर-कर के, सब ओर से प्राप्त करता है? सब ओर से मतलब अब जो बैठे हुए हैं, हम उसकी गोद में ही बैठे हुए हैं। ऊपर-नीचे, चारों तरफ भगवान ही भगवान है। उसको ऐसा समझो जैसे किसी ने नदी में डुबकी लगा ली। उसके सब ओर से पानी ही पानी है।
ईश्वर को सब और से पा लो। वह सब और से पाने योग्य है – ईश्वर है ही ऐसा। वह हर जगह है। आपको मिलेगा तो सब ओर से ही मिलेगा। पर देखो, भगवान ने ऐसा भी कह दिया कि “कौन है ऐसा जो यज्ञ के द्वारा सब ओर से ईश्वर को पा ले? मतलब यज्ञ कर-कर के ही ईश्वर आपको प्राप्त होता है।
यज्ञ के द्वारा, बंद आंखों से ही ईश्वर देखा जाता है, और यज्ञ के द्वारा ही ईश्वर को प्राप्त किया जाता है। यज्ञ चलेगा तो ब्रह्मा उपदेश करता है। उसमें वेद के मंत्रों का अर्थ होता है,तो उसमें श्रेष्ठ-कर्म, श्रेष्ठ-बल और श्रेष्ठ-बुद्धि प्राप्त होतें है। (इसलिए) यज्ञ करो! यज्ञ करो! यज्ञ करो!