ओ३म् सोमापूषणा जनना रयीणां जनना दिवो जनना पृथिव्याः।
जातौ विश्वस्य भुवनस्य गोपौ देवा अकृण्वन्नमृतस्य नाभिम्॥ (ऋग्वेद मंत्र २/४०/१)
जो ज्ञान है इसको आप सुनेI मनुष्य को प्रकाश, पृथिवी और धन और भी बहुत कुछ चाहिएI पृथिवी, प्रकाश और धन आदि की रक्षा हो इसलिए भगवान ने देखो कितने रहस्य समझाएँ हैI
भावार्थ: मनुष्यैः प्रकाशपृथिवीधनानां निमित्ते भूत्वा सर्वस्य रक्षकौ (यानी पृथिवी की भी रक्षा, प्रकाश की भी, धन की भी रक्षा) परमात्मनो ज्ञापकौ (ज्ञान देने के लिए परमात्मा ने) प्राणापानौ वर्त्तेत इति वेद्यम् (यह जानो कि प्राण, अपान वर्तमान हैंI) मलाद्धार में जो चलते हैं वो अपान हैंI ध्यान तो भगवान ने पूरे अष्टांग योग पर दिया है लेकिन फिर भी यह समझाया कि प्राणायाम करोI अगर हम प्राणायाम करते रहते हैं फिर तुम्हारे पास धन की भी कमी नहीं होगी और जमीन की भी कमी नहीं रहेगीI महाभारत में व्यास मुनि ने कहा कि अगर किसी योगी को भोजन भी खिला दिया तो अगले जन्म में उस इंसान को बहुत जमीन मिलेगी। यह रहस्य को जाना चाहिए कि प्राणायाम करो और किसी चीज की भी कमी नहीं रहेगी। प्राणायाम नित्य करना चाहिए और उसके साथ आसन लगाओ। भगवान ने इधर बड़ा अच्छा ज्ञान दिया है।
अग्नि, प्रकाश, चंद्रमा व औषधि, इनके बिना संसार में सुख नहीं होगा। तो इन सब के विषय में जानो। अब प्रकाश के बारे में साइंस में बहुत तरक्की की है पर ऋग्वेद में बहुत ज्ञान भरा पड़ा है। ईश्वर कह रहा है कि अग्नि के तीन स्थान है – इस आकाश में, पृथिवी के बीच में और तीसरा अंतरिक्ष में। अगर कोई समय निकाल कर के ठीक तरह से वेदों को सुनें तो इन तीन अग्नि (जो सूर्य में, पृथिवी में और अंतरिक्ष में हैं) के बारे में जान जाएगा।
अंतरिक्ष के निकट जो अग्नि है, प्रत्यक्ष पृथिवी में और अंतरिक्ष में गुप्त है, उसको जानो। उस अग्नि से कितना लाभ होगा जैसे उसमें बिजली भी है और सूक्ष्म होने के कारण कितनी शक्तिशाली होगी। अंतरिक्ष कितना सूक्ष्म है और उसके अंदर बिजली कितनी सूक्ष्म और खतरनाक होगी। यह सुखदाई भी होगी अगर उसका ठीक तरह से नियंत्रण किया जाए। भाव यह है कि श्रुतं तपः। विद्वान् की तन मन धन से सेवा करो और यज्ञ में वेद सुने।
पहले मुझे सेवा याद नहीं आती थी पर अब बुढ़ापे के कारण ज्यादा सेवा चाहिए। जवानी में मेरे मुख से सेवा के बारे में आता ही नहीं था। तब सिर्फ ब्रह्म ज्ञान, आहुति और तेजी से वेद निकलते थे और व्याख्या चलती थी। अब शिष्यों को जितनी सेवा की समझ है तब नहीं आई थी। योगी एकांत प्रिय होते हैं। सेवा से वो संवारता है, विद्या दान करता है और सेवा नहीं होती तो सेहत बुढ़ापे में चली जाती है।
तो यह विद्या है। अग्नि के तीन स्थान के रहस्य को जानो। यह जो सुना और आपके कान में आवाज़ आई और आपके लिए अमृत हो गई।