ओ३म् तुभ्यं हिन्वानो वसिष्ट गा अपोऽधुक्षन्त्सीमविभिरद्रिभिर्नरः।
पिबेन्द्र स्वाहा प्रहुतं वषट्कृतं होत्रादा सोमं प्रथमो य ईशिषे॥ (ऋग्वेद मंत्र २/३६/१)
हम चाहे गरीब घर में पैदा हो चाहे अमीर घर में, हमें आध्यात्मिक उन्नति करके गरीबी-अमीरी का फर्क मिटाना पड़ेगाI ऐसा भगवान का ज्ञान है कि उन्नति करोI
जबाला का पुत्र सत्यकाम अपने गुरु के पास दीक्षा लेने गयाI गुरुजी ने पूछा कि तुम्हारा गोत्र क्या है? माँ ने जैसा समझाया था उन्होंने सच-सच बोल दिया कि मैं जबाला नाम की प्रसिद्ध वैश्या का पुत्र हूँI मुझे अपने पिता का नाम और गोत्र पता नहीं हैI ऋषि ने बोला कि इतना कड़वा सत्य तो ब्राह्मण ही बोल सकता है, तू आज से ब्राह्मण हैI इसलिए झूठ से परे रहोI
चारों वेदों का ज्ञान प्राप्त करके योगाभ्यास आदि द्वारा अच्छी स्थिति करके सत्यकाम ने सबको ज्ञान दियाI वह वैश्या का पुत्र कहाँ रह गया? उसका नाम भी सत्यकाम थाI राजे-महाराजे उसके चरणों में पड़े रहते थेI वेद जाने वाले को, वेद के जिज्ञासु राजा अपने सिंघासन से उतर के दंडवत वंदना करते थेI वेद सुनने-पढ़ने वाले विद्यार्थी को भी राजा लोग वंदना करते थेI तो अच्छे-अच्छे महापुरुषों ने अच्छा-अच्छा लिख दिया कि वेद के बिना कोई ज्ञान नहीं हैI
यहाँ भी यही बात है कि उन्नति करोI सत्यकाम वैश्या का पुत्र कहाँ गिना गया? वह तो चारों वेदों का ज्ञाता अष्टांग योगी ऋषि हो गया थाI
(तुभ्यम् वसिष्ट इन्द्र) हे इन्द्र! हे यज्ञपति! (हिन्वानः) वृद्धि को प्राप्त होता हुआ मैं (तुभ्यम्) तुम्हारे लिये बसा हुआ हूँI यह ज्ञान बहुत गहरा हैI इसका मतलब है कि हमें अपना जीवन ईश्वर को समर्पित करना होता हैI काम, क्रोध, निंदा, द्वेष, चुगली, विषय-विकार को छोड़ना होता हैI जो वेद सुनता है वह इस भावना से रहता है कि मैं परमेश्वर के लिए बसा हुआ हूँI सत्य नर नारी की उन्नति होती है उसी को सुख संपदा मिलती हैI इसलिए ईश्वर वेद के सत्य मार्ग पर चलोI
(नरः) उत्तम लोग जो हैं आप लोग (अविभिः) रक्षा करने वाले होI जीवन की रक्षा भी विद्वानों के चरणों में हैI (अद्रिभिः) मेघों के साथ (सीम्) सूर्य की किरणें काम करती हैं तो वर्षा होती है और मनुष्यों को बहुत लाभ होता हैI वर्षा नहीं होगी तो सब मर जाएंगेI जैसे मेघों का आदित्य से संबंध है वैसे हे विद्वानों! आप भी रक्षा करने वाले होI
आदित्य के समान (गाः) वेद वाणी और (अपः) प्राणों को (अधुक्षन्) पूर्ण करोI वेद वाणी का ज्ञान पूर्ण करो – प्रेरणा दे देकर और सुना करके पूर्ण करोI प्राणों को पूर्ण करो मतलब प्राणायाम की शिक्षा दो क्योंकि प्राणायाम के बिना ईश्वर प्राप्ति संभव नहीं हैI प्रतिदिन प्राणायाम करो, चाहे एक ही करोI ये वाणी और प्राण से हमें ईश्वर का ज्ञान प्राप्त हो, हमें ऐसा कर दोI
(प्रथमः) पहले आप हो (स्वाहा) उत्तम क्रिया से (प्रहुतम्) अति उत्तमता से ग्रहण करने वाले (होत्रात्) दान के कारण, मतलब इन्द्र को दान दिया जाता हैI दिया जाता है आचार्य को लेकिन वह (इन्द्र) ईश्वर को स्वीकार होता हैI आपके दिए हुए दान का पुण्य वह ईश्वर आपको देता है और गुरु भी आपको देता हैI भगवान ने उस दान को स्वीकार कर लियाI वेद में दान के बड़े मंत्र हैंI यहाँ भी यही कहा कि सबसे बड़ी क्रिया है – स्वाहा और उसके द्वारा दान मिलता हैI (वषट्कृतम्) यज्ञ को, वेद मंत्रों की आहुतियों कोI हे प्रभु! अति उत्तमता से ग्रहण करने योग्य, दान के कारण क्रिया से सिद्ध जो यज्ञ है, उसमें हम आहुति डालें और वह यज्ञ हम सबको शुद्ध करेI (सोमम्) इसमें उत्पन्न सोमरस को (पिब) पियोI (ईशिषे) आप लोग भी ईश्वर के समान हो जाओगे ईश्वर यहाँ ऐसा कह रहा हैI
जैसे सूर्य की किरण से पानी बरसता है, तो शुद्ध वायु होती है और फसल भी अच्छी और शुद्ध होती हैI (महाभारत में श्री कृष्ण कह रहें हैं कि यज्ञ होता है तो हे अर्जुन! शुद्ध वर्षा होकर हमारे बच्चों को पौष्टिक आहार मिलता है) शुद्ध वर्षा से शुद्ध अन्न मिलता हैI आज से करीब ६०-८० साल पहले भी अन्न ज्यादा पौष्टिक थाI आज गंदे पानी से सब्जियां उगाने से सब्जी में ताकत नहीं हैI यज्ञ कितना important है इसको कोई समझ नहीं सकताI जीने के लिए भी यज्ञ चाहिएI
वेद-मंत्र सुनने चाहिएI जो यज्ञ अनुष्ठान से जल को शुद्ध करते हैं तो उससे उत्पन्न जल से औषधि पैदा होती है और इस रस को पियोI यज्ञ नहीं है, वर्षा नहीं है, अन्न शुद्ध नहीं है तो आप धर्म-अनुष्ठान भी शुद्ध नहीं कर सकते हैं, पर ईश्वर इस बात को आज माफ करता है कि जहाँ हवन होता है उस घर के अन्न-जल शुद्ध रहते हैंI इसलिए उनको खाकर के धर्म-अनुष्ठान करके सुख को प्राप्त करोI यज्ञ करने वाले स्वयं भी शुद्ध होते हैं और सब को सुख देते हैंI
ओ३म् यज्ञैः संमिश्लाः पृषतीभिर्ऋष्टिभिर्यामञ्छुभ्रासो अञ्जिषु प्रिया उत।
आसद्या बर्हिर्भरतस्य सूनवः पोत्रादा सोमं पिबता दिवो नरः॥ (ऋग्वेद मंत्र २/३६/२)
यज्ञ के द्वारा अंतरिक्ष में जल को शुद्ध करो और शुद्ध वर्षा से सबको सुख दोI यज्ञ में अनंत लाभ हैंI जीवन भर करते रहोI