सभी शिष्यों को रिटायरमेंट के बाद विद्या के प्रसार करने की कोशिश करनी चाहिएI आज्ञा यह है कि ६० साल के बाद ईश्वर और गुरु को आयु दे दोI अभी भी दे दोI ऋषि के चरणों में जो हैं वे भगवान की गोद में बैठे हैंI जब आप साधना करते हो तभी आप उसकी गोद में होI यह समय निकालकर गुरु और ईश्वर को दोI इस मंत्र का भाव यह निकलता है कि मनुष्य को चाहिए कि जो विद्वान कामना करते हैं उसी की कामना मनुष्य भी करेंI विद्वानों की कामना ९९.९९९९९% ब्रह्म की ही होती हैI उनको पता है कि जाना है, शरीर को छोड़ना हैI इसके अतिरिक्त कुछ भी नहींI जिंदा रहने के लिए जो कामना की जाती है उसकी कामना इंसान करेंI इसमें यहाँ जरूर है कि अगर हम वेद नहीं सुनेंगे तो हमें विद्वान का पता ही नहीं चलेगाI भगवान भी नहीं मिलेगाI आप लोगों पे सचमुच ईश्वर की कृपा है कि आपको वेद सुनने को मिल रहे हैंI आप लोग भी जो कामना विद्वान करते हैं उसी की कामना करोI
ओ३म् इच्छन्ति देवाः सुन्वन्तं न स्वप्नाय स्पृहयन्ति । यन्ति प्रमादमतन्द्राः ॥ (सामवेद मंत्र ७२१)
देव लोग ईश्वर की इच्छा करते हैंI ईश्वर की कामना करते हैं और आलस्य निद्रा कि नहीं करते हैंI आलस्य निद्रा से रहित उत्तम ब्रह्म का आनंद है उसको पाने की इच्छा करते हैंI मैं अपने अनुभव बता रहा हूं कि इस आयु में भी आराम नहीं कर पाता हूँI बड़ी मुश्किल से आधा घंटा मिलता हैI रात में तो बारह बजे से पहले सो ही नहीं पाता हूँI दो बजे उठना पड़ता हैI काम बहुत ज्यादा हैI भगवान की लीला ही हैI यह मंत्र यही कह रहा है कि विद्वान लोग मेहनती हैं तो तुम भी आलस्य छोड़ दो और विद्वान की तरह ईश्वर को पाने के लिए साधना और सेवा करोI इस मंत्र में यह भाव हैI
और यह भी कहा कि जो जो वह वेदों से उपदेश करते हैं उस उपदेश को सुनकर निश्चित ग्रहण करोI जैसे वह बोलेंगे कि सत्यं वद। धर्मं चर। वाचा वदामि मधुमत्। इनको तुरंत ग्रहण करो। वह बोलेंगे क्रोध नहीं करना चाहिए तो उसको ग्रहण कर लो। ये काम क्रोध लोभ मोह वर्जित हैं। आप पालन करो और आप छह महीनों में विद्वान हो जाओगे। मन को कंट्रोल करो। कंट्रोल करने के लिए साधना की जाती है। जो जो विद्वान बोलते हैं उसको फॉलो करो और जो जो वह इच्छा करते हैं उसकी आप इच्छा करो।