आज आप लोग श्रद्धा से मेरा जन्मदिन मना रहे होI जन्मदिन में यज्ञ भी रखा हैI सभी तरह सबको खुशियाँ हैI सब संगत और उनके परिवार को बहुत-बहुत आशीर्वादI सारी संगत लंबी आयु प्राप्त करें और परिवार सुखी रहेI गुरु, पितामह, यह संबंध ईश्वर के बनाए संबंध हैंI जब जब सृष्टि बनते हैं ब्रह्मा से गुरु परंपरा बनती हैI चार विषयों से ब्रह्मा ने ज्ञान लिया फिर उससे आगे वंश बढ़ते हैंI
शरीर अलग होते हैंI मैं यहाँ योल में बैठा हूं और आप लोग कोई दिल्ली में, कोई मुंबई में, कोई कहींI इस समय शरीर से हम जुदा है लेकिन दिल जहाँ मर्जी पहुंच जाता हैI आप दिल से मेरे साथ हो सभी और सभी को आशीर्वाद हैI स्तुति, प्रार्थना, व उपासना मंत्र से सचमुच में ईश्वर प्रसन्न होता हैI वह कण कण में है और सबको सुन रहा हैI वह छोटी से छोटी आवाज़ को भी सुनता हैI ऋषि equivalent to God हैI आज तक आप वेदों में गुरु भक्ति और स्तुति के बहुत मंत्र सुन चुके होI गुरु और ईश्वर की महिमा वेद और शास्त्रों ने अपरंपार कही हैI आचार्य गुरुजन जो हैं जो समाधिष्ठ हैं, वेद के वक्ता हैं, वह अपनी मर्जी से शरीर धारण करके तारने के लिए आ जाते हैंI जैसे भगवान कृष्ण और बहुत हुए हैंI बाकी भी शरीर धारण करके नहीं हैं फिर भी अपने शिष्यों की देखभाल करते हैंI ईश्वर के साथ २४ घंटे मग्न रहते हैंI इनकी वंदना वेदों में बहुत गाई हैI
भजन – वेदों में सुनकर प्रशंसा तुम्हारी (Album: Sarv Vyapak Ishwar Mahima Suno/T-Series)
जो वेद सुनेगा वह वेद के ज्ञाता विद्वान की शरण में आएगाI जो वेद नहीं सुनेगा वह जहां मर्जी चला जाएगाI
शरीर तो एक दिन छीनेगा हीI शरीर से जीव गुरु कृपा से जितना भी शुभ कर्म कर सकता है वह उनका ही हैI हमारे कई बच्चे चले गए हैं पर गरीब होकर कोई भी नहीं गया हैI गरीबी यही है कि दुनिया के भौतिक बाद में फंसकर ईश्वर भक्ति में जीरोI दरिद्रता का सामना करना पड़ता है और भिन्न-भिन्न योनियों में जाना हैI आप लोगों ने भी बहुत वेद मंत्रों को जीवन में इकट्ठा किया हैI यह आपकी आयु भी लंबी कर रहे हैं, धन-दौलत भी दे रहे हैं, सभी कुछ दे रहे हैंI यही सच्ची दौलत हैI मेहनत की कमाई भी जरूरी हैI यल्लभसे निजकर्मोपात्तम्, वित्तं तेन विनोदय चित्तंI (भज गोविन्दम् – ‘आदि शंकराचार्य’) – जो कर्मों से, मेहनत करके धन कमाओगे वह धन तुम्हें सुख और चित्त को आनंद देगाI मेहनत की कमाई तुम्हारे चित्त को सुख देगीI दान से कमाया पुण्य और यज्ञ तुम्हें शुद्ध करेगाI दान यज्ञ का सबसे बड़ा अंग हैI
What is the real definition of Almighty God? That definition is given by God here.
स जनास इन्द्रः (ऋग्वेद २/१२/१-२/१२/१४) हे मनुष्य! उसको (इंद्र – ईश्वर) को जानो! I इन मंत्र में शब्दों द्वारा अर्थ दिए गए हैं कि उसे ईश्वर कहते हैंI तुम अपनी मर्जी से ईश्वर बना लो, भगवान बहुत बड़ी सजा देगाI यह जो बरसों से कहर बरस रहा है, partition में भी हुआ, विश्व युद्ध में भी हुआ और ना जाने क्या क्या होता आ रहा है क्योंकि ईश्वर यह है और हम किसी और ईश्वर की पूजा कर रहे हैंI
ईश्वर कह रहा है कि मैं ईश्वर हूँI मनुष्य कैसे कह देगा कि यह ईश्वर है? वेदों के जानकार मनुष्य ही कह सकते हैंI हे समझदार मनुष्यों! समझने की कोशिश करोI ईश्वर की आज्ञा है कि वेदों को सुनोI सुनोगे तो ज्ञान होगा नहीं तो वह नहीं होगाI झूठ सुनोगे तो झूठ का ज्ञान हो जाएगाI सत्य तो वेद हैं व ईश्वर हैI वेदों में रमा हुआ भगवान हैI सब जगह भगवान हैI उसकी व्याख्या वेदों से सुनो कि ईश्वर किसको कहते हैं नहीं तो बार-बार जन्म-मृत्युI श्री कृष्ण कह रहे हैं कि जन्म-मृत्यु दु:ख हैI भगवान ने बड़ी कृपा करी है कि खाने-पीने को दे रहा हैI उसी के लिए यह अच्छा है जो ईश्वर को मानते हैंI मनुष्य चोले में आकर जी पशुओं से बदतर पाप करके बहुत बुरी योनि पाता हैI
ओ३म् यो जात एव प्रथमो मनस्वान्देवो देवान्क्रतुना पर्यभूषत्।
यस्य शुष्माद्रोदसी अभ्यसेतां नृम्णस्य मह्ना स जनास इन्द्रः॥ (ऋग्वेद मंत्र २/१२/१)
हे समझदार मनुष्यो, नर-नारियों! (प्रथमः मनस्वान्) सबसे पहले जिसमें ज्ञान-विज्ञान मनन शक्ति है (जातः) उत्पन्न हुआ (देवः) देव है वो, मतलब प्रकाशमान है वो (क्रतुना) अपने कर्म से (देवान्) ३३ देवताओं को जिसने उत्पन्न किया (पर्यभूषत्) को बनाया सजाया, यह पृथिवी सजा कर दान में दे दीI
पशु-पक्षी तो इसके आनंद को नहीं उठा सकते हैंI अगर साधना करोगे तो तुम उठा सकते होI भगवान ने यह पृथ्वी बना कर दी कि तुम्हें सुख मिले, एक कांटा भी ना लगेI ईश्वर ने सारा सुख दे दियाI इंसान खाने पीने में रम गया और दाता को भूल गयाI शान वेद में वर्णित ईश्वर को बुलाकर पैसा कमा कर ऐश करता हैI इस पृथ्वी में बनाए पदार्थों को पाकर विषय में लग गया इसलिए ईश्वर ने तेन त्यक्तेन (यजुर्वेद ४०/१) कहाI
(नृम्णस्य) धन के (मह्ना) महत्त्व, बीच में धन भी मिले, अन्न भी मिले, सब कुछ मिले इससे (रोदसी) आकाश और पृथिवी भी सुख मिले (अभ्यसेताम्) अलग होते हैं, मतलब यह दोनों अलग हैं, पृथिवी अलग है, स्पेस अलग हैIमान लिया कि स्पेस होता ही नहीं तो पृथिवी-पृथिवी होतीI तो फिर आदमी नहीं होते क्योंकि रहने के लिए स्पेस चाहिएI रुमाल के अंदर तो स्पेस है लेकिन इसमें वैसा स्पेस नहीं हैI मेरे हाथ में पुस्तक हैI पुस्तक और मेरे हाथ के बीच में स्पेस है तो मैं इसको ले सकता हूँI
इस अंगूठी में स्पेस नहीं होता तो यह मुझे सुख नहीं दे सकती हैI आपकी आंखें भी सबको सुख दे रही हैंI ऐसा सुख देने वाले ईश्वर को भगवान कहो जिसने स्पेस और पृथिवी अलग कर दिए हैंI पत्थर पानी ईश्वर नहीं हैI यह रचना हैI यह जो भी गुण हैं ईश्वर के भी हैं और सूर्य के भी हैंI
ईश्वर ने सब प्रकाश करने वाले और लोगों की व्यवस्था के लिए सूर्य को बनायाI सर्वप्रकाश ईश्वर प्रकृति से सबको प्रकाश में ले आया और संसार का निर्माण कियाI
मान लिया कि यह पुस्तक आपने बाजार से खरीदी और ले आए और रख दीI १५ साल के बाद उसको देखोगे तो सारे पन्ने खत्म हो जाते रहेंगेI यह तो एक रचना का उदाहरण हैI भगवान ने प्रकृति से सारा संसार बनाया और धारण भी कर रहा हैI प्रकृति से रचना कोई मूर्ति या साधु-संत नहीं कर सकते हैंIभगवान ने योगी की यह शक्ति कि तुम रचना नहीं कर सकते होI प्रकृति से रचना करके रचना को धारण कर रहा है और सब लोकों को – पृथिवी, सूर्य, चंद्रलोक आदि को बनायाI सूर्य का भी सूर्य हैI हे मनुष्यो! सूर्य को बनाने वाले परमेश्वर को जानोI श्रुतं तपः – सुनते सुनते ज्ञानवान बन जाओ, अज्ञानी मत रहोI यह भी ईश्वर है वह भी ईश्वर है, ऐसा मत कहोI सबसे बड़ा गुरु तो ईश्वर है और गुरु परंपरा ब्रह्मा से चलीI ब्रह्मा योग-विद्या और वेदों का ज्ञाता है, ये गुण वाले गुरु होते हैंI जो मर्जी गुरु और ईश्वर नहीं होता हैI