जीव यज्ञ कर करके लंबी आयु प्राप्त करें। यज्ञ से ही पिछले जन्म के कर्मों और इस जन्म के कर्मों का नाश होता है। दुनिया में ईश्वर ने कोई और रास्ता नहीं बनाया है। यज्ञ से ही अष्टांग योग विद्या सिद्ध होगी। केवल योगाभ्यास करने वाले तो आज अरेस्ट हो रहे हैं। योगाभ्यास का प्रारम्भ यम और नियम से है। यम और नियम का पूर्ण अध्ययन तो वेदों में है। वेद विद्या में ही अष्टांग योग विद्या है। ज्ञान दिए बिना ज्ञान नहीं होता। अष्टांग योग तो वेदों से निकला है। हिरण्यगर्भ: योगस्य वक्ता – ईश्वर योग का वक्ता हैI यज्ञ के बिना कोई सिद्धि नहीं हैI
ओ३म् श्रुधी हवमिन्द्र मा रिषण्यः स्याम ते दावने वसूनाम्।
इमा हि त्वामूर्जो वर्धयन्ति वसूयवः सिन्धवो न क्षरन्तः॥ (ऋग्वेद मंत्र २/११/१)
भगवान ने विद्या सुनने के लिए बनाई हैI यह मनुष्य द्वारा बनाई संहिता नष्ट हो जाएगीI व्यास मुनि जी ने परोपकार का काम किया जो ये भोजपत्र में लिख दिया तो यह गुम नहीं होगीI पहले मुँह-जबानी रहती थी और अब संहिता के रूप में है लेकिन ये सुनने के योग्य हैI ये पढ़ने-पढ़ाने के योग्य नहीं हैI यह परंपरागत ज्ञान हैI ईश्वर ने यह परंपरा बनाईI चार दिशाओं से ब्रह्मा ने ले ली और गुरु शिष्य परंपरा ब्रह्मा ने बनाईI जो कहते हैं कि गुरु नहीं चाहिए यह गलत बात हैI ऐसा कोई नहीं कह सकता की हवा नहीं चाहिए क्योंकि ईश्वर ने ऐसा नियम बनाया, वैसे ही वेद विद्या भी चाहिएI इसी से मूर्ख भी ज्ञानी बन जाता हैI ये कान सुनने के लिए दिए हैंI (हवम् श्रुधि) वेदों के ज्ञान को सुनो और (मा रिषण्यः) हिंसा मत करोI
ओ३म् सृजो महीरिन्द्र या अपिन्वः परिष्ठिता अहिना शूर पूर्वीः।
अमर्त्यं चिद्दासं मन्यमानमवाभिनदुक्थैर्वावृधानः॥ (ऋग्वेद मंत्र २/११/२)
जैसे सूर्य की किरणें पृथ्वी पर पड़ रही है वैसे ही ऋषि के मुख से वर्षा के रूप में वेद वाणी निकल रही हैI ये सेवक को प्रसन्न सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए निकल रही हैंI ऐसी सुंदर वाणी विद्वान् लोग बोलते हैं और सेवक सुनते हैं तो तर जाते हैंऔर वे विद्वान् जो सुनाते हैं उनका मान-सम्मान होता हैI
एक एक वाणी में उन्नति के लिए अद्भुत ज्ञान भरा पड़ा हैI राज्य को बढ़ाने को समर्थ और शस्त्र विद्या में कुशल राजा व सेना है, तो राजा का भी सम्मान होता हैI राजा सेना का सम्मान करें तो सेना राजा को सम्मान देगीI ईश्वर के नियमों पे चलो तभी अधर्मी शत्रु का नाश होता हैI मनुष्य लोग आप्त ऋषि जिस मार्ग पर चलते हैं उस मार्ग पर चलेंI विद्वानों को देख कर के, उनसे विद्या सुनकर के, उसी मार्ग पर चलेंI विद्वान् हमेशा वेद मार्ग पर चलेगा और वेद के अनुसार कार्य करेगाI पिछले जमाने में ऐसा ही होता थाI ईश्वर कह रहा है कि वेद सुनने से ही इंसान तर जाता है और गुरु की सेवा से भी इंसान तर जाता हैI