पृथिवी पर हर समय एक यथार्थ वक्ता की आवश्यकता है। यथार्थ वक्ता का मतलब है कि जो जैसा है वैसा ही बोलना। इसमें प्रमाण यही है कि ईश्वर जैसा है वैसा ही बोलो। अपनी मर्जी से क्यों बोलते हो? वेदों में ईश्वर का जैसा वर्णन है वही बोलो। वह जो बोलेगा और जो वेदों को सुनेगा उसका आचार्य यथार्थ वक्ता होगा। ऐसे विद्वान जो हैं वह भोजन भी बाँट कर करते हैं। भंडारे लगे रहते हैं। सब समय पर भोजन करते हैं। ब्रह्मचर्य का उपदेश होता है उसको धारण करके आप 100 वर्ष तक निरोग आयु प्राप्त करो। एक दिन तो जाना है लेकिन निरोग आयु हो और 100 वर्ष तक हो। उसकी नींव ब्रह्मचर्य है। तभी निरोगता आएगी।
ओ३म् वार्त्रहत्याय शवसे पृतनाषाह्याय च। इन्द्र त्वा वर्तयामसि॥ (ऋग्वेद ३/३७/१)
युद्ध विद्या के शिक्षक, आर्मी में जो ऑफिसर इंस्ट्रक्टर होते हैं, वह जवानों को शिक्षा देते हैं। मैंने सेना की सारी ट्रेनिंग देखी है। 1961 में सिख रेजीमेंट में था। सेना का भी ज्ञान भगवान दे रहा है। यह तो सृष्टि के आरंभ में दिया है। आप ऋषियों का धन्यवाद दो, उन्होंने अपनी समाधि अवस्था में इन सारे पदार्थों का ज्ञान लिया, अपनी भाषा में लिखा और जमाने को दिया। तो यह सेना भी तैयार हुई।
मनु भगवान पृथिवी के पहले राजा बने। उन्होंने इंसानों को समझाया की सेना और पुलिस दोनों चाहिए। यह तब से चला रहा है उनका वेदों का ज्ञान। एक ऋषि का ज्ञान नहीं है बहुत ऋषियों का ज्ञान है। अब तो लोग समझते हैं कि इसकी जरूरत नहीं है।
जो सेना अध्यक्ष और वृद्ध योद्धा है उन सैनिकों को ठीक शिक्षा दें जिससे कि अटल विजय प्राप्त हो। युद्ध की शिक्षा देने वाले अफसर शुरू से और लगातार उत्तम प्रकार से शिक्षा सैनिकों को भी देते हैं तो देश को कोई गुलाम नहीं कर सकता है। सेना मे शिक्षा बड़ी सुदृढ़ होनी चाहिए। यह शिक्षा अनादि काल से चली आ रही है। वायुयान भी अभी नहीं बने यह पहले से चले आ रहे हैं। सभी मंत्र भगवान के हैं।
कई बार इस मंत्र को समझाया कि वृद्धश्रवाः (सामवेद मंत्र १८७५) मतलब सबसे बड़ा सामवेद मैंने सुना हे प्रभु! हमें सुख शांति दे, हर सुख दे और हम साधना करते रहें।