यह बड़ा सुंदर ज्ञान है। जो विद्वान होते हैं, सब का पालन करते हैं और सारे संसार में पूजनीय होकर सत्कर्म करते हैं। आप लोग विचार करें और मैं भी विचार करता हूं कि तीसरे मंडल में भी ज्यादातर विद्वान के ही गुण चल रहे हैं। अगर विद्वान नहीं होंगे तो फिर ज्ञान नहीं होगा। मान लिया आज पूरी पृथिवी से सारे विद्वान चले जाएं तो संसार में जानवरों की तरह मनुष्य खाएंगे, पिएंगे और सो जाएंगे, पैसा कमाएंगे, लड़ाई दंगा फसाद होगा और बर्बादी होगी।
सतयुग, त्रेता व द्वापर – उन सब में यज्ञ चल रहा था और विद्वान पूरी जनता को ज्ञान देते रहे। कोई घर ऐसा नहीं था जहां अग्निहोत्र ना होता हो और विद्वान का आवागमन ना हो। विद्वान लोग हर तरह से पूजनीय थे। अगर पृथिवी से विद्वान निकल गए तो रह क्या जाएगा? खाना, पीना, सोना और सुख-शांति खत्म।
ओ३म् वनस्पते शतवल्शो वि रोह सहस्रवल्शा वि वयं रुहेम।
यं त्वामयं स्वधितिस्तेजमानः प्रणिनाय महते सौभगाय॥ (ऋग्वेद मंत्र ३/८/११)
भगवान ने विद्वानों की तरफ ही ज्यादा ध्यान दिया है। यहाँ भी कहा कि हे मनुष्य! ब्रह्मचर्य, सुशिक्षा, धर्म (कर्तव्य पालन), पुरुषार्थ – यह सब कुछ जिसमें हैं तो उसका कार्य सिद्ध होता है। ये जो बाँस जैसे बढ़ते हैं, यानि विद्वानों को विद्वान् करते चले जाते हैं। आप लोगों ने यह विद्या गहन रूप से ग्रहण करनी है। कई लोग प्रवचन भी करते हो, चर्चा भी करते हो। तो एक विद्वान् सही मायने में कितने विद्वान् पैदा करते हैं। आप लोग ईश्वर की नजर में आ गए हैं तो विद्या भी साथ-साथ बढ़ती चली जाती है। तो इस मंत्र में हिंसा का त्याग, आप्त सत्य वक्ता विद्वान्, आप्त ऋषि की शरण को प्राप्त हो और हमेशा धर्म का संग्रह करें। आप्त ऋषि की विद्या प्राप्त होए। जैसा प्यासा जल को प्राप्त करके तृप्त हो जाता है वैसे ही किसी जिज्ञासु को आप्त ऋषि का उपदेश प्राप्त हो जाए तो वह जिज्ञासु सब तरफ से सुखी हो जाता है।
यहीं से सारे उदाहरण शास्त्र में जाते हैं। जैसे प्यासा हिरण पानी को प्राप्त करके तृप्त हो जाता है वैसे जिज्ञासु आप्त ऋषि के उपदेश को प्राप्त करके हर तरह से तृप्त हो जाता है। आदमी के उपदेश से कोई तृप्त नहीं होता है। देव, असुर और मनुष्य ये जीव की तीन प्रकार की अवस्था है। मनुष्य खाएगा और पिएगा, उसको भक्ति का क्या पता है? देव आपको पता है। आप्त ऋषि का उपदेश पाकर वह विद्वान् हो जाएगा। तीसरा असुर राक्षस होता है। उसको ज्ञान से क्या लेना देना होगा? तो मनुष्य जीवन में गुरु की बहुत महत्वता है। वे गुरुजन जो वेद विद्या और अष्टांग योग के ज्ञाता हैं। वे मिलते हैं तो मनुष्य तर जाता है और देव योनि में आ जाता है अगर उसको संशय ना रहे। देव योनि में आकर किसी जन्म में तर जाता है। तो आप्त ऋषि के उपदेश के बिना सब बेकार है। मनुष्य का उपदेश नर्कगामी है और दुखदाई है। मनुष्य सेल्फ-मेड (self-made) स्टोरी बताएगा और आप्त ऋषि God-made ज्ञान बताते हैं।