जो भी यज्ञ करता है उसको ईश्वर सारे सुख देता है। इसलिए ईश्वर ने यह प्रार्थना बनाई है कि हे मनुष्य! मुझसे रोज प्रार्थना करो कि – हे प्रभु! हमें यज्ञ की प्रेरणा दे। भगवान ने कहा कि यज्ञ से श्रेष्ठ कर और कुछ भी नहीं है। हर चीज से, हर पल से, बड़े ऊंचे ऊंचे पद के लोगों से, यह श्रेष्ठ है। प्राचीन काल की philosophy जो वेद अनुसार है, उसमें कई बार मैंने समझाया कि ऋषियों को देखकर राजे महाराजे खड़े हो जाते थे और राजा लोग उनको अपने आसन पर बिठाते थे। जब किसी राजा को पता चल जाता था कि कोई समाधिष्ट पुरुष राज्य में है तो उसको सबसे पहले राजा ही प्रसन्न करके, मना कर, जैसे तैसे अपने दरबार में ले आते थे। कारण यही था कि सुबह भी उनके दर्शन होते थे, साईं काल को भी उनके दर्शन और दोनों समय ज्ञान सुनने का सौभाग्य होता था। हमारा जन्म ही इसके लिए है कि हम अच्छे कर्म व यज्ञ करें। हम पढ़े-लिखे लेकिन कोई साथ साथ वेदों को नहीं सुनेगा तो भगवान ने उसको अज्ञानी कहा है। यज्ञ के बिना कुछ भी शुद्ध नहीं होता है। सब कुछ राक्षसों की झूठन होता है। रोजाना अग्निहोत्र और अवसर पड़े तो यज्ञ करते रहो।
यज्ञ की बहुत गहराइयाँ हैं। जो हमसे बिछड़ जाते हैं उनको तारने के लिए भी यज्ञ ही एक तरीका है।
अनुष्ठान की आहुति से जीवन को समृद्ध बनाओ। धन-धान्य बड़े तो ईश्वर प्राप्ति हो इसलिए यज्ञ किया जाता है। यह वेद मंत्र अमृत हैं। कान से मन को प्राप्त होता है। फिर मन से बुद्धि को जाता है और बुद्धि जीवात्मा को, मतलब आपको, भेजती है। आप जीवात्मा हैं शरीर नहीं है। इस शरीर और इंद्रीयाँ आपके बस में रहे और इन इंद्रियों से आप ईश्वर प्राप्ति व परोपकार के कार्य करें। आप कभी ना करें। इन इंद्रियों का इस्तेमाल जब आप मैं करते हैं तो पापी होकर जिंदा भी दु:खी रहते हैं और मर कर भी दु:खी रहते हैं।
ओ३म् वि यद्वरां॑सि॒ पर्व॑तस्य वृ॒ण्वे पयो॑भिर्जि॒न्वे अ॒पां जवां॑सि।
वि॒दद्गौ॒रस्य॑ गव॒यस्य॒ गोहे॒ यदी॒ वाजा॑य सु॒ध्यो॒३॒॑ वह॑न्ति। (ऋग्वेद मंत्र ४/२१/८)
अभी भी राजा के विषय में ही है। आज के राजा इसे धारण करें ऐसा बहुत मुश्किल लग रहा है। इसमें कहा कि जैसे गाय अपने गुणों को धारण करती है – गाय को माता इसलिए कहते हैं कि कर्म अनुसार कभी किसी की माता बिछड़ जाए और दूध पीता बच्चा हो तो फिर उसको गाय का दूध ही देते हैं। उससे उस बच्चे के प्राणों की रक्षा होती है। गाय के स्वास से टीवी के रोग खत्म हो जाते हैं। उसका गोबर उसका यूरिन सब लाभकारी है। गाय के अनंत गुण है मैंने कई बार लिखा है। उन गुणों को अगर गाय भी चाहे तो भी खत्म नहीं हो सकते हैं। गाय अपने मालिक को पहचानती है और दूध देती है।
जैसे एक लोहा है। लोहा अपने गुण नहीं छोड़ सकता है। सोना, चांदी, हीरे आदि अपने गुण नहीं छोड़ सकते हैं। तो राजा को यहां यह आज्ञा दिन है कि जैसे गाय अपने गुणों को नहीं छोड़ दी है, गौ हमारी रक्षा करती है, वैसे ही धार्मिक पुरुषों का जो गुण है उसको राजा धारण करें। महापुरुषों के, ऋषि मुनियों के गुण राजा धारण करें तो फिर राज्य की रक्षा भी होती है और राज्य चलता भी है। ईश्वर तरह-तरह से ऋग्वेद में राजनीतिज्ञ के गुण दे रहे हैं।