वेद निर्मल ईश्वर की वाणी है। यह लिखे भी नहीं भगवान ने और ना ही मुंह से बोल कर दिए हैं। क्योंकि भगवान तो निराकार है। अकाय है, उसके तो हाथ, पैर ,इंद्रियां होती ही नहीं है, तो वह बोल नहीं सकता। बोलते तो ऋषि मुनि है। जैसे हर सृष्टि के आरंभ में बिना लिखे, पढ़े, चारों ऋषि-मुनियों को ज्ञान देता है।
अपनी सामर्थ्य से बिना लिखे पढ़े, बिना बोले, ऋषियों के हृदय में प्रकट करता है। ईश्वर सर्वशक्तिमान है। अपनी सामर्थ्य से पैदा करता है। अब आगे ऋषि चुप नहीं रहते। उनमें यह सामर्थ्य नहीं है, कि बिना बोले किसी के हृदय में यह ज्ञान प्रकट कर दें। यह सामर्थ्य तो ईश्वर में है। वह एक ही बार सृष्टि के आरंभ में उन 4 ऋषियों के लिए, पूर्व के 4 ऋषियों के लिए यह उपयोग करता है। इसके बाद हर ऋषि बोलकर ज्ञान देता है। वो ज्ञान अंदर से ही आता है, ईश्वर से। तभी वह वेद कहलाते हैं।
सामवेद उपासना कांड है। बहुत प्यारा है। इसमें परमेश्वर का स्वरूप भी बड़ा है।आप बार-बार मंत्र बोलते हो तो परमेश्वर की पूजा होती है उससे।
यह श्री कृष्ण महाराज ने कहा है,जन्म मृत्यु जरा व्याधि दुःख दोषानुदर्शनम् (भ. गी. १३ .९) बार बार जन्म लेना बार-बार मृत्यु होना और फिर बीमारियाँ और बुढ़ापे का दुख जो है, हे अर्जुन! इसको दुख के रूप में देख। यह बहुत दुखदाई हैं। जन्म भी, मृत्यु भी, जरा भी, व्याधि भी बहुत दुखदाई हैं। तो बुढ़ापे को कंट्रोल करो।
कृष्ण महाराज जी ने एक 120 वर्ष की आयु में शरीर छोड़ा था। पूरे स्वस्थ थे और निरोग थे। गृहस्थ आश्रम में उन्होंने ब्रह्मचर्य पर और अर्जुन ने भी ब्रह्मचर्य पर ध्यान दिया था। उस समय भीष्म पितामह और सभी लोग बड़े बलशाली थे। उस समय पूर्व की जनता भी महान होती थी, जो कि वेदों पर चलती थी। और आप याद रखें वेद सबसे पहले ब्रह्मचर्य का ही उपदेश देते हैं। चलो भगवान की जो लीला है आप लोगों में ज्ञान आए बस मेरे जो शिष्य है मेरे बच्चे हैं, उनमें ज्ञान आए और दीर्घायु प्राप्त करें, यज्ञ करते रहें। मंत्र का उच्चारण आचार्य के मुख से जरूरी है, उनमें ही मंत्र बोलते हैं, जो गुरु के मुख से निकले, तो ही वेद सुना जाता है।
ओ३म् निष्षिध्वरीस्त ओषधीरुतापो रयिं त॑ इन्द्र पृथिवी बिभर्ति।
सखायस्ते वामभाजः स्याम महद्देवानामसुर॒त्वमेकम्॥ (ऋग्वेद मंत्र ३/५५/२२)
हम थोड़ा बीमार होते हैं,तो हमारे सुख के लिए ईश्वर कहता है कि विविध प्रकार की औषधि बनाई है। वेद का ज्ञान लोगे डॉक्टर लोगों को लाभ ही लाभ है। पर भोजन बनाओ सब्जी, चार प्रकार की, पांच प्रकार की, दो प्रकार की, तीन प्रकार की चाहे एक प्रकार की बनालो दाल। सब कुछ डालो, उसमें मिर्च वगैरह, नमक मत डालो। तो सब्जी अच्छी नहीं लगेगी । तो आप सब काम कर रहे हैं। दुनिया भर के बिजनेस, खाना-पीना। यदि भगवान को याद नहीं कर रहे.. आप लोग तो याद करते हो भगवान को। यह भगवान की और गुरु की आप पर कृपा हो गई है। दो टाइम याद करने का मतलब होता है, हर टाइम याद किया। दो टाइम के अग्निहोत्र या फिर यज्ञ, इंसान को देव योनि में ले आते हैं। गुरु की सेवा भी भी इंसान को देव योनि में ले आती है।
मैं यह समझा रहा था कि अगर समझदारी हो जाए, (विद ज्ञाने) ज्ञान आ जाए, कि हम बीमार पड़ते हैं, तो औषधियां जो हैं वो तो basically भगवान ने बनाई हैं ,वेदों में। और सबसे बड़ा वैद्य जो है, डॉक्टर जो है ,वह ईश्वर है। तो उसी बात को यहां पर कह रहे हैं, कि हे ईश्वर! आपने हमें सुख देने के लिए यह सृष्टि बनाई है और आपने विविध प्रकार की औषधियां बनाई और जल रचे। तो हम जो है, आप की ही सेवा करें, उपासना करें। जिस भगवान ने हमारे लिए सुख के लिए सृष्टि बनाई, जिस भगवान ने हमारे लिए औषधियां बनाई, हम उस भगवान की पूजा करें, उपासना करें वह निराकार है सर्व व्यापक है।
क्या आनंद आता है कि आपने यह सब मंत्र मुंह जुबानी रट लिए (40 वां अध्याय यजुर्वेद)।। ऐसे ही 31 वां अध्याय भी महत्वपूर्ण हैं, उसे भी मुंह जुबानी रट लो।
मैंने आपको जो अर्थ भी समझाया है ,वह ऋग्वेद तीसरे मंडल 55 सूक्त का 22 वा मंत्र है।
ईश्वर ने सुख के लिए सृष्टि बनाई और औषधियां बनाई। औषधियों में ही चावल, बाजरा, कनक ,दालें सब आता है। सब वनस्पतियां भी औषधियां हैं। सारे (HERBS) हर्ब्स अब देखो जितनी भी औषधियां बन रही है वह हर्ब्स से ही बन रही हैं। देखो चाहे एलोपैथिक (ALLOPETHIC) हो आयुर्वेदिक(AYURVEDIC) हो कोई सी भी हो। वो सब हर्ब्स (HERBS) से ही बनती हैं।
तो जिस भगवान ने हमारे सुख के लिए पृथिवी बनाई कि हमें काँटा भी ना लगे, और दवाइयाँ बनाई फिर औषधियां, तो यह काम कोई और थोड़ी कर रहा है। तो जिस भगवान ने यह करा, तो उसी भगवान की पूजा करो ना। इस भगवान को छोड़ कर के किसी और भगवान की पूजा क्यों करते हो?
यह तो दुखदाई है। भगवान नाराज़ होता है। खाते हम भगवान का है ,और पूजा हम किसी और की करें, तो भगवान तो नाराज होगा ही। ऋग्वेद में कह रहा है कि मैं नाराज़ हूं ,और दण्ड दे रहा है।
क्या यह पहले भी कभी आया है करोना? महाभारत काल से पहले किसी महामारी का वर्णन नहीं है। यही वर्णन है कि इंसान निरोग रहते थे, दीर्घायु वाले थे। घर-घर में अग्निहोत्र होता था, यज्ञ होते थे, यही वर्णन है। किसी में शक्ति नहीं है इतनी ताकत नहीं है कि जो कोई ईश्वर के बनाए नियमों का उल्लंघन कर जाए। किसी की ताकत नहीं है यह याद कर लो। हम सब, जब से दुनिया बनी ऑक्सीजन से ही जी रहे हैं। किसी की हिम्मत नहीं ,ताकत नहीं कि ऑक्सीजन का अल्टरनेटिव (OXYGEN alternative) निकाल ले। हम भोजन खा कर पेट भरते हैं। किसी की ताकत नहीं कि वह कहे कि रेत से पेट भर लो।
भगवान के बनाए किसी भी नियम को हम चेंज नहीं कर सकते,तो पूजा-पाठ क्यों चेंज करके बैठ गए?
दुखों को आमंत्रित कर लिया। ईश्वर ने जो कर्म बनाए हैं जैसे for example: देवपूजा, संगतीकरण और दान। जैसे कहीं कहीं ईश्वर कह रहा है, अभी पीछे मंत्रों में भगवान ने कहा कि जिस ईश्वर मैं सृष्टि बनाई सुख के लिए, हर्ब्स बनाए ,उस ईश्वर की पूजा करो और किसी की ना करो। तो यह नियम चेंज क्यों कर दिया? ईश्वर के नियम चेंज करके दुख आमंत्रित करते हैं हम उस दया निधि परमेश्वर की उपासना करें।
ओ३म् स पर्य॑गाच्छु॒क्रमकायमव्र॒णमस्नावि॒रꣳ शु॒द्धमपापविद्धम्। क॒विर्म॑नीषी परिभूः स्वयम्भूर्या॑थातथ्यतोऽर्थान् व्य᳖दधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः।
इसके अर्थ भी आपको याद हैं। यह ईश्वर के गुण हैं। यह कहीं जा के, योगी में मिलते हैं। ईश्वर कहता है, योगी के पास जाओ, विद्वानों के पास जाओ, वेद के ज्ञाता के पास जाओ।