उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।। (गीता श्लोक ६/५)
इस प्रकार हे (पुरुष) शरीर में निवास करने वाली जीवात्मा (ते उद्यानं) तेरी उन्नति हो (न अवयानं) तेरी कभी अवनति ना हो (ते मनः तत्र मा गात्) तेरा मन वहाँ यमलोक में ना जाए अर्थात् तू मृत्यु की चिंता में ग्रस्त ना हो (मा तिरः भूत्) तेरा मन तिरोहित – विलोन – चिंता में डूबा हुआ सा ना हो (मा जिवेभ्यः प्रमदः) जीवित लोगों के विषय में अपने कर्तव्य से तू प्रमादयुक्त ना हो (पितृन् मा अनुगाः) हर समय चिंताकुल होता हुआ तू भी पितरों के पीछे मत चला जा।
मा ग॒ताना॒मा दी॑धीथा॒ ये नय॑न्ति परा॒वत॑म्। आ रो॑ह॒ तम॑सो॒ ज्योति॒रेह्या ते॒ हस्तौ॑ रभामहे ॥ (अथर्ववेद ८/१/८)
[मा गातनां आदीघीथा] तू चले गए व्यक्तियों का ही रोना मत रोता रह अथवा उन्हीं का ध्यान मत करता रह (ये परावतं नयन्ति) जो तुझे भी दूर देश में ले जाते हैं अर्थात् मरे हुऒं को रोता रहेगा तो तू भी शीघ्र मरेगा। दिन वा रात्रि ही यम के शबल् या श्याम कुत्ते हैं। हे जीवात्मा! ये (यौ) जो (श्यामः च शबसः च) रात्रि व दिन रूप (यमस्य सर्व नियन्तः) प्रभु के (पथिरक्षी स्वानोः) मार्गरक्षक कुत्ते हैं। ये (प्रेषितौ) भेजे हुए (तवा) तुझे न संदितबद्ध करें अर्थात् न काटें।
तू (अर्वाङ् एहि) तुम्हारे सामने आने वाला वन अर्थात् जीवित प्राणियों में रहकर कर्तव्य पालन कर (मा विदीध्य:) मरे हुए पुरुषों का विलाप मत करता रह (अत्र) इस जीवन में (पराङ् मनः) बहुत दूर गए हुए मन वाला होकर (मा तिष्ठः) मत स्थित हो।
श्या॒मश्च॑ त्वा॒ मा श॒बल॑श्च॒ प्रेषि॑तौ य॒मस्य॒ यौ प॑थि॒रक्षी॒ श्वानौ॑। अ॒र्वाङेहि॒ मा वि दी॑ध्यो॒ मात्र॑ तिष्ठः॒ परा॑ङ्मनाः॥ (अथर्ववेद ८/१/९)
हे जीवत्मा! (एतं पन्थां मा अनुगाः) इस मार्ग के पीछे मत जा जिससे कि मृत जाते हैं (एषः भीमः) ये गए हुओं का स्मरण करते रहने का मार्ग भयंकर है। इस मार्ग पर जाने का निषेध करके मैं तुझे (तं ब्रवीमि) उस मार्ग का उपदेश करता हूँ। (येन पूर्वं न इयथ) जिससे मृत्युकाल से पूर्व तू नहीं जाता है, मरे हुओं का शोक करेगा तो समय से पहले ही चला जाएगा। (एतत् तमः) यह मरे हुए का शोक करते रहना तो अंधकार है – अज्ञान है (मा प्रपथाः) इसकी ओर मत जा (परस्तात्) परे अर्थात् परे चले गए – मरे हुए का शोक करते रहने में तो (भयं) भय ही भय है (अर्वाक् अभयं) हम सबको सम्मुख आने में निर्भयता है अर्थात् शोक को छोड़कर जीवितों में रहकर कर्तव्य पालन करने में निर्भयता है।