ओ३म् एतास्ते अग्रे समिधस्त्वमिद्धः समिद्भव।
अयुरस्मासु धेह्य्म्रितत्व्माचर्याय। (अथर्ववेद मंत्र १९/६४/४)
यह आचार्य के लिए निरोगता और आयु बढ़ाने वाला मंत्र है। इसका अर्थ है कि ध्यान, धर्माचरण, आचार्य की आयु और निरोगता बड़े। इस मंत्र का यह भी भाव निकलता है कि पहले धर्म पर चलना है और अधर्म का नाश करते हुए आहुतियां डालनी है।
ओ३म् शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥ (ऋग्वेद ३/३४/११)
इस मंत्र का भाव भी बड़ा अच्छा है। मनुष्य दुष्ट और श्रेष्ठ पुरुषों की परीक्षा करें कि कौन दुष्ट है और कौन श्रेष्ठ है। किसका संग करना चाहिए और किसका संग नहीं करना चाहिए। कहने का मतलब यह है कि दुष्ट और सज्जन की पहचान होनी चाहिए। दुष्टों का ईश्वर नाश करता है और सज्जनों की रक्षा करता है। यह उसका नियम है।
विद्वान् गुरु की सेवा तो महान है। उससे बड़ा कुछ है ही नहीं क्योंकि ईश्वर कहता है कि मुझे जानने के लिए पहले गुरु को रिझाओ।
वादी और प्रतिवादी के वचनों को सुनो। आपस में वार्तालाप होगा तो ज्ञान बढ़ेगा। किसी लड़ाई में दोनों को सुनो और उससे जो न्याय करने वाले पंडित हैं वह न्याय करें। मूर्ख तो अन्याय करेगा। पंडित का आदर करो और मूर्ख का निरादर करो। भगवान कहता है कि इस तरह से पक्षपात रहित रहो और किसी की फेवर (तरफ़दारी) मत करो और न्यूट्रल (निष्पक्ष) रहो। संपूर्ण जनों को सुख देने वाले और न्याय करने वाले राजा का मान और सम्मान करो। न्यायाधीश, पुलिस आदि से राजा न्याय की व्यवस्था करता है। ऐसा जो न्याय करता है उस राजा का सम्मान करो।
ओ३म् तिष्ठा हरी रथ आ युज्यमाना याहि वायुर्न नियुतो नो अच्छ। पिबास्यन्धो अभिसृष्टो अस्मे इन्द्र स्वाहा ररिमा ते मदाय॥ (ऋग्वेद ३/३५/१)
इस मंत्र में एकदम ज्ञान का विषय बदल गया है। जो मनुष्य अग्नि आदि पदार्थों से चलनेवाले पदार्थ ( जैसे विमान, मोटरसाइकिल आदि) आकाश में, वायु में भी विमान को लेकर उड़ जाते हैं तो व्यापार भी होता है और अर्थव्यवस्था (इकॉनमी) बढ़ती है।
भगवान यहाँ कह रहे हैं कि भक्षण ( भोजन, खाना आदि) को भी प्राप्त होते हैं। अपने देश में बहुत कुछ है, बाहर के देश में भी कुछ है। मुख्य ज्ञान तो यही है कि देश विदेश में जाकर व्यापार करो पर अगर वायुयान नहीं हैं तो व्यापार कैसे करोगे? अगर कोई बिजली (अग्नि) का वाहन नहीं होगा तो विदेश में जाकर कैसे व्यापार करोगे? ऐसे कुएँ में मेंढक बंद होता है वैसे अगर यान आदि नहीं होते तो अपने देश में ही बंद हो जाते हैं । जहाज बनाने की क्रिया तो ईश्वर ने बताई, ऋषियों ने लिखी, तब जहाज बनें और तब सुख मिल रहा है।