ओ३म् नि त्वा दधे वर आ पृथिव्या इळायास्पदे सुदिनत्वे अह्नाम्।
दृषद्वत्यां मानुष आपयायां सरस्वत्यां रेवदग्ने दिदीहि॥ (ऋग्वेद मंत्र ३/२३/४)
ओ३म् इळामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध।
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे॥ (ऋग्वेद मंत्र ३/२३/५)
सब मिलकर रहें। विद्या, धर्म और सुख को बढ़ाएँ। आज इंसान अविद्या से ग्रस्त हो रहा है। हम मिलकर विद्या का प्रचार करने की सोचें। गुरु की शिक्षा को और ग्रहण करने की सोचें। करोना आ गया नहीं तो आश्रम में रहकर आनंद से आहुतियाँ पड़ती थी। बाहर वाली संगत की काफी कमी हो गई है। आहूतियों से अगले जन्म में देवयोनि मिलेगी। मित्र भाव वेद से ही बढ़ते हैं। और कुछ नहीं चाहिए। गुरु की संगत में जो आ जाते हैं उन्हें विशेष लाभ है। विद्वानों के संग व विद्वानों सेवा से उनकी विद्या व शिक्षा बढ़ेगी। उनका भाईचारा व मित्र भाव भी बढ़ेगा।
लोगों ने वेद छोड़ दिए तो क्या करें? आप लोगों के पास जो विद्या है तो आपसे दुनिया द्रोह आदि नहीं कर सकती है। आप में विद्या का प्रभाव है। दूसरा भगवान ने यहाँ उपदेश दिया है कि पहले आचार्य से शुभ गुणों को ग्रहण करना फिर उन शुभ गुणों का दूसरों को दान देना है। जो कुछ आपके पास है या जो लिखते हो वही वार्तालाप में ले आओ कि हमने अपने गुरु जी से वेद का ये उपदेश सुना था, ऐसा आप प्रचार करो। वेदों के बिना तो किसी को गुण आ ही नहीं सकते हैं।
गौर से वेद सुनोगे फिर समझ में आएगा कि मैं दुनिया की मदद करूँ। भौतिक और सारे ज्ञान तो वेद में है। हमें अपना जीवन वेदों के अनुसार बनाना चाहिए। उसके खिलाफ जितना भी कर्म है वो पाप है। तो ज्ञान लो फिर उस ज्ञान को धारण करो। वो ज्ञान दूसरों को दो। इसमें अनंत ज्ञान है। अगर कोई अपना लेता है, साधना करता है, यज्ञ करता है, योगाभ्यास करता है तो यह गुण धारण करके देवयोनि में आता है। सारा वेद आपके सामने हैं। आप सुनते रहते हो।
ओ३म् अग्न इळा समिध्यसे वीतिहोत्रो अमर्त्यः। जुषस्व सू नो अध्वरम्॥ (ऋग्वेद मंत्र ३/२४/२)
अब इस मंत्र को देखो। विद्वान हर प्रकार के हैं। कोई हाथों से काम करने वाला मेहनती इंसान है वह भी वेद सुने और जो कुछ जानता है वह दूसरे को सिखाएं और उनको भी वेद वाला बनाए। विद्वानों के द्वारा जो वहअपने लिए चाहते हैं, जिससे उनकी अपनी भी वृद्धि होती है, तो उनका यह कर्तव्य है, फर्ज है कि जिस रास्ते पर चलकर उनकी उन्नति होती है उसी रास्ते पर दूसरों को भी चलाकर उन्नति कराएँ। विद्वान वेदों को फैलाने के लिए कोशिश करें। मेरा भी मन है कि दूर-दूर जाकर के वेदों का प्रचार करूँ। वेद हमारा जीवन है। लोगों को शिक्षा दी जाए। अगर स्वास्थ्य ठीक हो गया तो यह जरूर करूंगा। स्वास्थ्य को जरूर दूर तक ले जाएंगे। यज्ञ करेंगे। वेदों का अर्थ बताएंगे।
जब प्रचार होगा तो यह ज्ञान आचरण में आ जाएगा।