सबसे महान कार्य जो इस शरीर से जीवात्मा ने करवाना होता है वह यज्ञ है। यज्ञ में ब्रह्मा प्रवचन करता है, बोलता है, विद्या दान करता है। वही ब्रह्मा योग की शिक्षा और हर चीज की शिक्षा देता है। यह सबसे श्रेष्ठ कर्म है।
नामकरण या तो जन्म के समय या १०१ दिन के बाद जब मर्जी करा सकते हैं। नामकरण संस्कार का एक ही मंत्र होता है। देवेश का मतलब सुखी रहने वाला, वेद की पढ़ाई करने वाला। नामकरण संस्कार के मंत्र का अर्थ है कि सूर्य के बनाए हुए प्रत्येक महीने में यह बालक प्रवेश करें अर्थात् उसको लंबी आयु प्राप्त हो। वेदों के द्वारा बहुत सुंदर नाम रखे गए हैं।
इन मंत्रों का मनन करो। मनन किया तो मंत्र है। कई लोग इसको ऋचा बोलते हैं। उसको बोलते हैं जिस मंत्र का आपने अर्थ नहीं सुना। जब मनन हो गया तो वह मंत्र है।
मननात् इति मन्त्र: – वैसे सारे ऋचाएँ हैं पर जो मनन किया उसको मंत्र बोलते हैं। बार-बार ईश्वर कमाल का ज्ञान देता है।
हे नर नारियों! अगर आप ऐश्वर्य की इच्छा करते हो तो विद्वानों का संग करो। अच्छा संग यही है कि गुरु के चरणों में साक्षात बैठ जाओ और ध्यान से वाणी भी सुन रहे हो तो वह भी अमृत है। श्रद्धा व ध्यान से सुनने का भाव अमृत है।यह आपके लिए अमृत है व आप को अमरता प्रदान करेगा।
आप सुख या ऐश्वर्य कि अच्छा करते हो, मतलब वेद विद्या से सारे सुख प्राप्त करना ऐश्वर्य कहलाता है। विद्वानों का संग करो और जो वह विद्या बोल रहे हैं उसको सुनो, मनन करो और उसमें आचरण करो।
फिर शरीर को निरोग करो। यही जबरदस्त उपदेश है कि ब्रह्मचर्य का धारण करो। ब्रह्मचर्य से शरीर निरोग और बलवान हो जाता है। ब्रह्मचर्य से शरीर में ऐसी ताकत के कीटाणु आ जाते हैं की उसी वक्त वायरस या बैक्टीरिया को मार देगा। उसके बाद सात्विक आहार करो, ध्यान में बैठो, माता-पिता गुरु की सेवा करो, गुरु का संग करो, फिर आपकी आयु भी बढ़ जाएगी और शरीर भी निरोग रहेगा। और निरोग रहकर विद्वान दूसरों को विद्वान बनाएँ और अग्नि आदि पदार्थ विद्या को सिद्ध करें। जैसा कल बता तीन प्रकार की अग्नि जो है उसको सिद्ध करो। अग्नि की विद्या जानो। अग्नि में पदार्थ डालने से क्या एक्शन रिएक्शन होता है इसको जानकर सबको सुख पहुंचाओ।
सत्य, चेतन और आनंद इसको सच्चिदानंद कहते हैं। घन अपने तरह से लगाते हैं मतलब अनंत।