भगवान ने इन मंत्रों में इंजीनियरिंग का ज्ञान दिया हैI इनमें कहा है कि अच्छे-अच्छे यान बनाओ जैसे हवाई जहाज आदिI यह अग्नि और जल से चलेंI वेद अनादि हैंI आज जितने भी हवाई जहाज, कार, पानी के जहाज यह सब हवा पानी और बिजली से ही चलते हैंI काष्ठ का मतलब लकड़ी हैI जहाज में लकड़ी से भी काम होता हैI यह लंबा चौड़ा ज्ञान है इसके अध्ययन से ही गाड़ियाँ बनी हैं I भगवान ने सारे ज्ञान दिए हैंI
अगला मंत्र ईश्वर के विषय में हैI इसमें कहा है कि हे मनुष्य! अनादि प्रकृति जगत की उत्पत्ति का कारण हैI यह तीन गुणों वाली प्रकृति हैI प्रकृति की परिभाषा बहुत जरूरी हैI ऐसे ही ईश्वर किसे कहते हैं, जड़ किसे कहते हैं व चेतन किसे कहते हैंI ये तो जिज्ञासुओं को बहुत ज़रूरी है, जो आप लोग भी हैंI आलसी के लिए ज्ञान जरूरी नहीं हैI प्रकृति की परिभाषा है सत्वरजस्तमसां साम्यावस्था प्रकृति (सांख्यदर्शन सूत्र १/६१)I यह कपिल मुनि का सूत्र हैI ये तीन गुण जब काम नहीं करते हैं उसको साम्य अवस्था बोलते हैंI जब ये गुण निढाल होते हैं और कार्य नहीं करतेI जैसे कोई नींद में पड़ा होI ये बिल्कुल जड़ होते हैं जैसे कोई पत्थर पड़ा होI ये तीनों गुण निढाल हैं, तीनों गुणों का रूप प्रकृति हैI प्रकृति एक तत्व हैI
जब वह तीन गुण काम नहीं करते हैं, वह प्रलयावस्था होती हैI प्रलय का पीरियड बहुत लंबा होता हैI और सृष्टि जब बनती है कुछ समय लगता हैI उसके ५ साल के बाद ईश्वर चार ऋषियों को ज्ञान देते हैं और वे आगे देते हैंI तो जब ईश्वर ने ज्ञान दे दिया तब समझो कि सृष्टि बन गईI नहीं तो ज्ञान किस को देखा ईश्वर?
मनुष्य का शरीर बनकर जीवात्मा ने उस शरीर को धारण कर लियाI कर्मानुसार जीवात्माओं ने अपने-अपने शरीरों को धारण कर लिया जैसे कुत्ता, बिल्ली, साँप, मनुष्य, ऋषि आदिI तो इसके बाद ईश्वर ज्ञान देकर विद्या फैलता हैI प्रकृति में ईश्वर की शक्ति का जरा सा कण काम करता है और रचना हो जाती हैI ईश्वर काम नहीं करता हैI पादः अस्य पुनः अभवत् (यजुर्वेद मंत्र ३१/४) – एक पाद, यानी जरा सी शक्ति का कण मात्र प्रकृति में काम करके यह सारा संसार बनकर खड़ा हो जाता हैI यथा पूर्वं अकल्पयत् – जैसे पहले सृष्टि बनी थी वैसे यह सृष्टि भी बनती हैI
प्रकृति मैं ईश्वर की जरा सी शक्ति काम करके सारा संसार बनता हैI प्रकृति जगत का कारण है और संसार इसका कार्य हैI कार्य का मतलब प्रकृति से यह संसार बनाI ईश्वर निमित्त कारण हैI और जो रचना करने का कारण वह प्रकृति है क्योंकि वह जड़ हैI उससे संसार बनता हैI
भगवान समझाते हैं कि हे मनुष्यो! जगत का कारण प्रकृति है और जगत बनाने के बाद सब प्राणी शरीर धारण करते हैंI यह कार्य स्वभाविक है, होते रहता हैI रचना, पालना व प्रलय – ये ईश्वर की शक्ति से अपने आप होते रहते हैंI रचना के बाद शरीर में जाकर जीवात्मा अपने अपने किए हुए कर्मों का भोग भोगती हैI हाँ, यह जरूर है कि अगर परमेश्वर अपनी शक्ति प्रकृति में ना लगाए तो कोई भी शरीर ना बने और कोई भी जीव कोई भी सुख नहीं भोग सकताI वह जीवात्माएँ पड़ी रहेंगी कोमा अवस्था में जैसे कोई आलसी चारपाई पर पड़ा रहेगाI यह ध्यान देना चाहिए कि ईश्वर की कृपा से ही हमको शरीर मिला हैI
जो भी गुरु की देखभाल करनी चाहिए और सेवा करनी चाहिए, वो करते रहोI देखभाल से ही गुरु का शरीर बना रहेगाI शिष्यों का कर्तव्य है कि गुरु की देखभाल करेंI