ईश्वर का ज्ञान अनंत है और अद्भुत है। देखो कि यह वेद भी मनुष्य के शरीर में प्रकट होते हैं, ईश्वर भी इसी शरीर में प्रकट होता है। वेद भी निराकार हैं, ईश्वर भी निराकार है।
चारों वेदों का मुख्य लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति है। मतलब तिनके से ब्रह्म तक का ज्ञान और अनंत ज्ञान जो वेदों में है, वह ज्ञान ब्रह्म प्राप्ति के लिए हैं। अथर्ववेद में कई बार मैंने इस मंत्र की व्याख्या भी की है।
ईश्वर कह रहा है मुख्य ज्ञान और लक्ष्य, मनुष्य का भी और वेदों का भी वो ईश्वर प्राप्ति है। तो हमारा मुख्य लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति होना चाहिए।
श्रेष्ठतमाय कर्मणा – हमारी ज्ञान इन्द्रियां, कर्म इन्द्रियां, मन और बुद्धि सिर्फ यज्ञ से ईश्वर की प्राप्ति के लिए हैं। अब यज्ञ के लिए भी धन चाहिए, सेहत के लिए भी धन चाहिए, मकान के लिए भी, तो उसके लिए मेहनत की कमाई करो। पका लक्ष्य कमाई करना नहीं है, मुख्य लक्ष्य ब्रह्म-प्राप्ति है। ब्रह्म-प्राप्ति के लिए मेहनत की कमाई की जरूरत है, जैससे बच्चों का भी पालन पोषण आदि भी हो। यह ज्ञान लेकर जिओ। अगर यह ज्ञान नहीं है तो ये जीना बेकार है।
तो जो पैसा-पैसा बोलते हो – भगवान कब मना करता है? वह तो कहता है कि आपके पास मेहनत की कमाई के करोड़ों, अरबों हो हो लेकिन आप रोज साधना करें और लक्ष्य से ना भटके। लक्ष्य आपका ईश्वर प्राप्ति है। एक बार भी लक्ष्य से भटक गए तो दोबारा बड़ा मुश्किल से मौका मिलता है।
भटकने के लिए कितनी भिन्न-भिन्न योनियां है। भगवान दु:ख देता है।
तो यह ज्ञान सुनना है। श्रुतम तप: – आप बैठे सुन रहे हो, यह सारा आपका तप है।
ओ३म् उषा उच्छन्ती समिधाने अग्ना उद्यन्त्सूर्य उर्विया ज्योतिरश्रेत्।
देवो नो अत्र सविता न्वर्थं प्रासावीद्द्विपत्प्र चतुष्पदित्यै॥ (ऋग्वेद मंत्र १/१२4/१)
देखो दिन-रात होते हैं। यह भी तो रचना ईश्वर की है। हम दिन का भी और रात्री का भी सदुपयोग करें। वेदों से निकला हुआ कर्म ही धर्म है। अगर हम अपने कर्तव्य-कर्म समझ जाएं तो कर्तव्य-कर्म का नाम ही तो धर्म है।
चोदना वच: इति धर्म: – चोदना का अर्थ है ईश्वर से प्रेरित ज्ञान, वेदों से प्रेरित ज्ञान, वच: मतलब वचन। ईश्वर से प्रेरित जो वचन है इति धर्म: -उनका पालन करना धर्म है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई तो इंसानों ने बनाए हैं, हमने बनाए हैं, और लड़ाई दंगे हो रहे हैं। ईश्वर का तो एक ही धर्म है, इंसानियत। जिसका ज्ञान वेदों में ईश्वर ने दिया कि मैंने इंसान बनाए हैं। उन इंसानों को मैंने वेदों का ज्ञान दिया।
इस मंत्र में उषा का वर्णन है। हर चीज का ज्ञान देखना चाहिए। पृथिवी और सूर्य की किरणों के संयोग से जयते मतलब उत्पन्न होते है। सूर्य की किरणों और पृथिवी के संयोग से ज्ञान उत्पन्न होता है।
किरणें आती है और पृथिवी को छूती हैं, तो प्रातः काल का ज्ञान होता है। जैसे हम पृथिवी को देख रहे हैं, हम सूर्य को देख रहे हैं, हमचंद्रमा को देख रहे हैं और वस्तुओं को, समुद्रों को, नदियों को, मनुष्यों को – ये मूर्तियां ही तो हैं। ये मूर्तियां, जैसे हमारे शरीर, परमाणुओं के संयोग से बनी हैं। जो ये कार्य है, उसका कारण कौन है?
प्रातःकाल का कारण सूर्य है। यह सारा संसार अंधेरे में छुपा हुआ होता है। जब सूर्य सुबह निकलता है, तो हर चीज हमें ठीक-ठीक दिखाई देती है। वह प्रात:काल है। उसको भगवान ने प्रात:काल कहा है। उषा काल 4:00 बजे और जब तक सूर्य ना निकले। जब सूर्य निकल आए तो प्रातः काल हो जाता है। तो उसमें हर चीज हमें दिखाई देती है। सूर्य का निर्माण भगवान ने किया है।
क्यों ना हम यज्ञ कर कर के ईश्वर को धन्यवाद दें। हे भगवान! तूने पृथिवी, सूरज, चाँद ,सितारे ,हमारे सुख के लिए दिए हैं। यह पृथिवी भी हमारे सुख के लिए है। तो याद रखो कि सूर्य ना हो तो हम सभी अंधे हैं, कुछ नहीं दिखाई देगा। कैसे बड़ा सूर्य आकाश में बिना किसी खंभे के घूम रहा है, एक अरब 97 करोड साल हो गए घूमते घूमते। ना कोई रिपेयर है की आवश्यकता है। यह ईश्वर की सृष्टि रचना है।
ओ३म् अमिनती दैव्यानि व्रतानि प्रमिनती मनुष्या युगानि।
ईयुषीणामुपमा शश्वतीनामायतीनां प्रथमोषा व्यद्यौत्॥ (ऋग्वेद मंत्र १/१२4/२)
प्रातः काल के और स्त्री के सम्बन्ध (relation) देखो भगवान ने कैसे बताया हैं।
हे स्त्री ! जैसे (उषाः) प्रातःसमय की वेला (दैव्यानि) दिव्य गुणवाले (व्रतानि) सत्य पदार्थ वा सत्य कर्मों को (अमिनती) न छोड़ती और (मनुष्या) मनुष्यों के सम्बन्धी (युगानि) वर्षों को (प्रमिनती) अच्छे प्रकार व्यतीत करती हुई (शश्वतीनाम्) सनातन प्रभातवेलाओं वा प्रकृतियों और (ईयुषीणाम्) हो गईं प्रभातवेलाओं की (उपमा) उपमा दृष्टान्त और (आयतीनाम्) आनेवाली प्रभातवेलाओं में (प्रथमा) पहिली संसार को (व्यद्यौत्) अनेक प्रकार से प्रकाशित कराती और जागते अर्थात् व्यवहारों को करते हुए मनुष्यों को युक्ति के साथ सदा सेवन करने योग्य है, वैसे तूँ अपना वर्त्ताव रख
हे नारी! जैसे (उषाः) प्रातःसमय की वेला (दैव्यानि) दिव्य गुणवाले (व्रतानि) सत्य पदार्थ वा सत्य कर्मों को (अमिनती) न छोड़ती। अब प्रातः काल की वेला ना किसी के कर्म को छेड़ती है ,और ना ही किसी पदार्थ को छेड़ती है। जैसे प्रात:काल निकला तो किरणों ने पेड़ को छेड़ दिया और गिरा दिया, आदमी को मार दिया,ये नहीं छेड़ती। ये ऐसा सुख देती है प्रातः काल की वेला।
(श्रुतम तप:) आप भगवान् की वाणी को सुन रहे हो, यह तप है। नहीं सुनोगे तो भगवान् कहता है कि तुम्हें पदार्थों का ज्ञान कैसे होगा? अगर ऋषि मुनि यह दिन का, रात्रि का और सूर्य का ज्ञान ना फैलाते तो साइंस के पास कैसे आ जाता? आम आदमी भी नहीं जानता। आम आदमी पृथिवी पर भार होकर जी रहा है। वह ईश्वरीय वाणी नहीं सुनता, ईश्वर की प्रशंसा नहीं करता, स्तुति नहीं करता कि ईश्वर तेरी रचना कमाल की है।
आप भी बैठकर के, आसन लगाके उसकी मंत्रों से स्तुति करो और गाओ। यह रोजाना जो आप हवन करते हैं इन मंत्रों में स्तुति, प्रार्थना और उपासना तीनों हैं। प्रार्थना ,उपासना और स्तुति यही चाहिए बस। रोज करो, वह तो कण-कण में है, सबकी सुनता है। तुम्हारे मन में भाव आने से पहले समझ जाता है । अगर तुम उसकी स्तुति, प्रार्थना के मंत्र बोलोगे, उपासना के मंत्र बोलोगे और प्रेम से भरकर बोलोगे, तो सुनेगा नहीं? वो तो सुनेगा। वो तो कह रहा है ऐ जीव! तू सुन! श्रुतं तप: – यह तेरा तप है और मुझे सुना। प्रार्थना के द्वारा तू मुझे सुना। उपासना और प्रार्थना कर मुझसे मांग और स्तुति के द्वारा मुझे रिझा।
युगों-युगों से व्यतीत करते हुए उषा किसी को नहीं छेड़ती है। यानी इस उषा ने पृथिवी पर करीब-करीब मनुष्यों के साथ १ अरब ९७ करोड़ साल व्यतीत कर दिए। मनुष्यों के शरीर तो बनते बिगड़ते रहे, पर उषा काल रोजाना समय से आती रही। उषा काल में,ब्रह्म-मुहूर्त में उठकर साधना करनी चाहिए।
मैं अपनी प्रशंसा के लिए नहीं कह रहा लेकिन मुझे कहीं से सुनने को मिल जाता। क्योंकि मैंने कभी अपने बारे में सोचा ही नहीं, मैं तो बस इसी में लगा रहता हूँ। कोई मुझे बताता है कि मैंने बचपन में आपको देखा है। आप ३ बजे सुबह उठकर सिमरन करते थे १० बजे तक। फिर नहाया-धोया और फिर ऑफिस। और ऑफिस से फटाफट आ कर दोबारा तपस्या में बैठ जाते थे। मैंने आपको जब भी देखा तो आप तपस्या में ही लीन रहते थे। दिन-रात बैठे देखा। ये जिंदगी भगवान् अगर किसी को बख्श दे तो कमाल ना हो जाए। सुबह उठे और उषा काल जो ४ बजे शुरू होती है, साधना में बैठे हुए। मैं कभी बाहर नहीं गया या घूमने नहीं गया। जहाँ-जहाँ पोस्टिंग हुई वहाँ भी मेरी साधना ही रही।
वो प्यारा भगवान् जो सबसे ज्यादा खूबसूरत है,आनंददायक है, सुखदायक है। हम लोगों को वो ऐसे ऐसे बच्चे देता है, वह खुद कितना सुंदर है। किसी भी जानवर का जैसे बकरी, घोड़े, गधे का बच्चा भी कितना सुंदर लगता है। उसकी प्रशंसा हम ही नहीं करते है,आप लोग भी रोज स्तुति करते हो। आपके सौभाग्य का निर्माण हो रहा है। यह गुरु कृपा हुई है।
(मनुष्या) मनुष्यों के सम्बन्धी (युगानि) वर्षों को (प्रमिनती) अच्छे प्रकार व्यतीत करती हुई (शश्वतीनाम्) सनातन प्रभातवेलाओं वा प्रकृतियों और (ईयुषीणाम्) हो गईं प्रभातवेलाओं की (उपमा) उपमा दृष्टान्त और (आयतीनाम्) आनेवाली प्रभातवेलाओं में (प्रथमा) पहिली संसार को (व्यद्यौत्) अनेक प्रकार से प्रकाशित कराती और जागते अर्थात् व्यवहारों को करते हुए मनुष्यों को युक्ति के साथ सदा सेवन करने योग्य है, वैसे तूँ अपना वर्त्ताव रख
तो यह उषा युगों-युगों से इंसानों के साथ व्यतीत करती हुई और सनातन प्रभातवेलाओं की हो गई। इसमें ईश्वर ने उपमा दी है। यहाँ वाचकलुप्तो अलंकार है।
और आने वाली जो प्रभातवेलाऐं हैं, उनमे अनेक प्रकार से प्रकाशित कराती हुई, सारे जगत को, व्यवहारों को करते हुए, मनुष्य को, और जो प्रभात-वेला जो सबसे पहले सेवन करने योग्य है। ऐसे ही मनुष्य तू प्रभात वेला से अपना बर्ताव रख। कैसा कमाल का भजन भगवान ने लिखवा दिया –
सृष्टि रचना का निकला था पहला जब प्रभात ना देखी ना जाने किसी ने अचरज की वह बात।
यहां पर वाचकलुप्तो अलंकार है। प्रातः काल की जो वेला है वह पृथिवी सूरज के साथ चलने वाली है, पूर्व देश को छोड़ती हुई, उत्तर देश को ग्रहण करती जाती है। मतलब सूर्य की जो रोशनी है, वह चलती जाती है अभी इधर है, तो सायंकाल को उधर है। तो ऐसे मनुष्य का जीवन है कि कभी भी चलता -चलता -चलता खत्म हो जाता है, लेकिन प्रकृति से जो सूरज, चंद्रमा इत्यादि देखो ,यह समय आने पर ही,प्रलय में जाते हैं और अपना रूप बदली करते हैं, और फिर प्रकट हो जाते हैं। यह रचना चली आ रही है। इस रचना को समझते हुए, उषा काल, सांय काल ,इन सब का अध्ययन करते हुए और वेदों के मंत्र सुनते-सुनते, प्रभु के साथ हो जाना है, प्रभु से मिलन करना है। प्रभु के साथ हो जाओ, बस। प्रभु के साथ होने का नाम ही मोक्ष है। मोक्ष यानी हमने समाधि स्थित होकर उस ज्योति के साथ संग किया। हम आनंद में डूबे, उसका आनंद भोगा, सोम रस का पान किया और हमेशा के लिए उसके साथ हो गए। वो (Omnipresent) सर्वव्यापक है।
मान लिया योगी इधर है, तो इधर भी वो है। उधर भी है तो, उधर भी वो है। मुंबई गया कोई योगी तो मुंबई है,अमेरिका गया है तो अमेरिका में भी भगवान है। २४ घंटे योगी ईश्वर के साथ, आनंद में है।
तो यह यहाँ पर उपमा अलंकार में ईश्वर ने तीन की उपमा दे दी है।
जो नारी प्रभात वेला में सूर्य की तरह, प्रभात की तरह, विद्वानों की तरह, अपने बच्चों को सुशिक्षा से विद्वान विदुषी बनाती है तो वह नारी सत्कार करने योग्य है। यह नारी का कर्तव्य है। वही नारी सत्कार करने योग्य है ,जो बच्चों को शिक्षा की तरफ मोड़ती है ,शिक्षा देती है ,विद्वानों से दिलाती है। तो ऐसे बच्चे भी फ़िर भौतिकवाद में भी और आध्यात्मिकवाद में भी महान बनते हैं और जीवन में कोई दाग नहीं लगता। कोई श्रीराम जैसा बनते हैं, कृष्ण जैसे बनते हैं, अर्जुन जैसे बनते हैं, कोई गौतम ऋषि, कोई कितने महान चारों वेदों का ज्ञाता अत्रि ऋषि आदि जैसे बनते हैं, और इधर भौतिकवाद में भी उन्नति करते हैं।
यह प्रातः काल की उषा से उपमा अलंकार करते हुए भगवान ने यह समझाया कि उषाकाल किस लिए दिया है आपको? और एक-एक क्षण आपके जीवन में किस लिए दिया है?
अश्व जात: – अश्व है यह समय, ये गुजर रहा है इसलिए उषा का भी ठीक इस्तेमाल करो। सुबह उठकर साधना, अपनी पढ़ाई लिखाई, गृहस्थी है तो अपनी साधना आदि बताई है, और दोपहर का भी ठीक इस्तेमाल करें ,सांयकाल का भी अग्निहोत्र वगैरा करे। यह सारा समय गुजर रहा है, बिना किसी साधना, बिना अच्छे कार्य के ना गुजारो। भगवान ने इस मंत्र से समझाया है। यह बड़े-बड़े मंत्र हैं।