थोड़ा-थोड़ा चिंतन मनन बहुत जरूरी है। कानों से अमृत सुनना है। यह जो आप सुन रहे हो ये वेद हैं, ये अमृतवाणी है। आप अमृतवाणी वेद सुन रहें हैं। अगर चिंतन मनन भी होगा तो सोने पर सुहागा है। अभी तक जितने मंत्र हुए हैं वहाँ ज्यादातर विद्वानों का ही वर्णन चल रहा है।
विद्वानों का मुख्य कर्म यह है कि, जिज्ञासु जो उनके पास आता है। जो सच में ज्ञान चाहने वाला आता है, चाहे वह वेद ना जानता हो तो उसको ज्ञान देकर सुखी करते हैं। जो लोग सेवा करते हैं वो ज्ञान लेते हैं। यह विद्वान का स्वभाव है। विद्वान के पास ज्ञान प्राप्ति के लिए जाना है। जो और कुछ इच्छा रखते हैं वो पापी हो जाते हैं।
ईळे द्यावापृथिवी पूर्वचित्तयेऽग्निं घर्मं सुरुचं यामन्निष्टये।
याभिर्भरे कारमंशाय जिन्वथस्ताभिरू षु ऊतिभिरश्विना गतम् ॥ (ऋग्वेद मंत्र १/११२/१)
हे (अश्विना) विद्या को प्राप्त करके उनको दान देने वाले उपदेशक! (ईश्वर ने उनको इस मंत्र में सम्बोधित किया है) आप जैसे (यामन्) मार्ग में (पूर्वचित्तये) पूर्व विद्वानों में संचित किये हुए। विद्या सीखते चलो। जैसे मैंने आपको पहले बताया कि पूर्व का अर्थ सृष्टि के आरम्भ में चार ऋषियों और उनके बाद जो ऋषि उस युग में हुए हैं। ईश्वर ने रचना की है, इसलिए कहते हैं कि रचना सुनो। आपने रचना के बारे में काफी सुना है। आप भाग्यशाली है। आपने भाग्य का निर्माण किया है। यास्क मुनि के अटल वाक्य सुनो। फिर सुनो। जो रचना को नहीं जानता तो उसको यह नहीं कह सकते कि यह साधु है, सन्यासी है, गुरू है या गृहस्थ में विद्वान है।
आपको यजुर्वेद का 31 वां अध्याय सुना रहा था कि रचना में ही वेदों की उत्पत्ति है। चारों वेदों की उत्पत्ति के बाद जो उसके कानून ऋषि-मुनियों ने बताए थे उसमें 1% का अरबवां हिस्सा भी नहीं बदल सकता क्योंकि भगवान ने ऋग्वेद में एक मंत्र बताया है और वह आपको याद होना चाहिए। ये बड़े-बड़े पर्वत, ये समुद्र, ये आकाश, ये जंगल, ये ब्रह्मलीन योगी – कोई मेरे बनाए हुए नियमों को बदल नहीं सकता। जो 5 वर्ष लगे सृष्टि लागू करने में, वो सृष्टि-क्रम में हैं। वह बदला नहीं जा सकता। उस पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया सकता लेकिन प्रश्न करके समाधान ले लो। वो नियम eternal, everlasting, unchangeable है। वो इतने दिनों में लागू किए, वो हर सृष्टि में ऐसा ही रहेगा।
यह समय, सूर्य इत्यादि जैसी पिछली सृष्टि में था वैसी ही अब है। वैसे ही अगली सृष्टि में भी रहेगा। यह unchangeable, unchallengeable ईश्वर के बनाए हुए कानून है। अनादि समय से पृथिवी चली आ रही है। इस रचना के बारे में सुन-सुन कर, प्रश्न कर-कर के आनंद में लीन हो जाओ। समय निकालो और खूब सुनो! कमाई पर भी ध्यान दो। बच्चों पर भी ध्यान दो। जो गृहस्थ में रहकर ब्रह्मचर्य करें वह महान होता है। गृहस्थ में ना होकर भी भीष्म पितामह जैसे नैष्टिक ब्रह्मचारी रहे हैं । गृहस्थ में भी अर्जुन जैसे ब्रह्मचारी रहे हैं। भीम भी गृहस्थ में ब्रह्मचारी थे। हिडिंबा से उनका पुत्र घटोत्कच पैदा हुआ था। हनुमान जी जैसे भी ब्रह्मचारी हुए हैं।
गृहस्थ में साधना और ब्रह्मचर्य के नियमों को पालन करते हुए रहते हैं वे श्रेष्ठ हैं। गृहस्थाश्रम ही है जो तीन आश्रमों का बोझ उठाता है। सन्यासी, वानप्रस्थी गृहस्थी की सेवा से जीता है तपस्या करता है। जो ब्रह्मचारी बालक हैं वह माता पिता से पैसे लेकर पढ़ाई करते हैं और भोजन करते हैं।
इसलिए वेदों में कहते हैं कि गृहस्थ आश्रम सबसे ऊंचा है। मैं नियम के बारे में भी बता रहा था कि सृष्टि रचना के बारे में आप भले 100 प्रश्न करें, अच्छा लगता है और समझते जाएँ। जैसे सृष्टि रचना, पालना और फिर नष्ट हो जाती है। इसका जितना समय है (४ अरब कुछ का) यह उतना ही रहेगा। सृष्टि के आरंभ में चार ऋषियों को ज्ञान दिया – अग्नि, वायु, अंगिरा व आदित्य – है यही रहेंगे। जीवात्मा तो बदल ही जाएंगी पर नाम नहीं बदलेंगे। ब्रह्मा को इन चारों ने ज्ञान दिया था। ब्रह्मा का भी नाम चेंज नहीं होगा। ब्रह्मा की जीवात्मा तो कोई और होगी। यह सृष्टि कर्म है, अबाध्य है, बड़ा ही आनंद वाला है।
बार-बार यह चीजें आती हैं और मैं समझा रहा हूं।
हे विद्वान्! (ईश्वर ने उनको इस मंत्र में सम्बोधित किया है) आप जैसे (यामन्) मार्ग में (पूर्वचित्तये) पूर्व विद्वानों में संचित किये हुए। विद्वानों ने ज्ञान अर्जित किया और फिर सतयुग त्रेता द्वापर में और विद्वान होते चले गए लेकिन सबसे पहले पूर्व में वे चार ऋषि आते हैं।
(इष्टये) सुख के लिये (द्यावापृथिवी) सूर्य का प्रकाश और भूमि (याभिः) जिन (ऊतिभिः) रक्षाओं से युक्त (भरे) संग्राम में (घर्मम्) प्रतापयुक्त (सुरुचम्) अच्छे प्रकार प्रदीप्त और रुचिकारक (अग्निम्) विद्युत् रूप अग्नि को प्राप्त होते हैं। अग्नि तो सर्वत्र है। इसके बिना जीवन नहीं है। हममें भी अग्नि है, आप में भी अग्नि है, पत्ते पत्ते में अग्नि, ऐसे सभी जगह अग्नि है।
वैसे ही (ताभिः) रक्षाओं से (अंशाय) भाग के लिये (कारम्) जिसमें क्रिया करते हैं उस विषय को (सु, जिन्वथः) उत्तमता से प्राप्त होते हैं (उ) तो कार्य्यसिद्धि करने के लिये (आ, गतम्) सदा आवें, इस हेतु से मैं (ईळे) आपकी इच्छा करता हूँ।
जैसे प्रकाशयुक्त सूर्य्यादि और अन्धकारयुक्त भूमि आदि लोक सब घर आदिकों के चिनने और आधार के लिये होते और बिजुली के साथ सम्बन्ध करके सबके धारण करनेवाले होते हैं। तुम्हें रात्रि में भी प्रकाश ही प्रकाश मिलेगा। यह ज्ञान ईश्वर देते रहते हैं – सङ्कॆत् भी देते हैं और विस्तार से भी देते हैं। इसमें बताया कि आप कैसे 24 घंटे बिजली का उत्पादन कर सकते हैं। यजुर्वेद में एसी करंट, डीसी करंट, और दिया-बत्ती इत्यादि का भी विवरण है।
यहां भगवान यह इशारा कर रहा है की हमने तुम्हें जन्म दिया है लेकिन रात्रि में तो तुम अंधकार में ही रहोगे। सूरज में तो प्रकाश रहेगा पर पृथिवी पर अंधकार रहेगा। तो अंधकार दूर करने के लिए आप बिजली से जुड़ों। अग्नि से जुड़ों। यह ऋग्वेद है, इसमें पदार्थ विद्या है। सोना, चाँदी, रुपया, पैसा,अग्नि, पृथिवी, वायु, जल आदि – सभी प्रकृति के पदार्थों का ज्ञान दे रहा है। अग्नि का भी ज्ञान दे रहा है। उससे तुम्हारी रक्षा है। यजुर्वेद में मकान बनाना और आर्किटेक्चर का ज्ञान दिया है। जंगल के पास घर में साँप आ जाते हैं। आपके पास रोशनी होनी चाहिए। वो हर तरह से आपकी रक्षा करेगी।
कोई कोई प्रश्न हो वह पूछ लिया करो।