स्वामी राम स्वरूप जी, योगाचार्य, वेद मंदिर (योल) (www.vedmandir.com)
स एषः पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात् (पातञ्जल योग दर्शन १/२६)
अर्थात् ईश्वर ही हमारे पूर्वजों का प्रथम गुरु है क्योंकि ईश्वर को मृत्यु नहीं आती। यहाँ यह विचारणीय है कि जब महाप्रलय में यह तीनों लोक नष्ट हो जाते हैं उस समय कोई भी ऋषि-मुनि, विद्वान् शेष नहीं रहता। उसके बाद पुनः ईश्वर सृष्टि रचना करता है और उस नई सृष्टि में कोई भी ऋषि-मुनि आदि ज्ञान देने के लिए नहीं होता क्योंकि सब ज्ञानी पिछली सृष्टि में शरीर त्याग चुके होते हैं।
केवल ईश्वर ही मृत्यु को प्राप्त नहीं होता। अतः ईश्वर ही नई सृष्टि में सर्वप्रथम चारों को वेदों का ज्ञान देता है।
व्यास मुनि ने भी वेदांत शास्त्र में ‘शास्त्रयोनित्वात्’ (ब्रह्मसूत्र १/१/३) कह कर यह रहस्य प्रकट किया है कि उस ईश्वर की पूजा करो जिसमें से चारों वेदों का ज्ञान निकलता है। ऐसे ही प्रत्येक ऋषि ने इस ईश्वरीय चारों वेदों को समझ अपना मस्तक झुकाया है।