स्वामी रामस्वरुप जी, योगाचार्य
वेद मंदिर योल कैंट हिमाचल प्रदेश
यजुर्वेद मन्त्र 12/67,68 का भाव है कि मनुष्य विद्वानों की शिक्षा द्वारा कृषि कर्म में उन्नति करें। मंत्र में कहा है कि योगी नाडिय़ों में परमात्मा का ध्यान करते एवं ज्ञानवान होते हुए परमानन्द को प्राप्त होते हैं। वैसे ही विद्वान पुरुष कृषि के उत्तम साधन हल आदि यंत्र तथा उत्तम बैलों को जुओं में जोड़कर अन्नादि पदार्थों को उत्पन्न करके कृषि कर्म के सुखों को प्राप्त होते हैं।
मंत्र में कहा है कि हल आदि से कर्षित खेत में जौ, गेंहू, चना दाल आदि अनेक बीजों को बोओ और खेतों से प्राप्त होने वाली सब अन्न की जातियां है। उनसे जो भोजन बने उनकों ग्रहण करके खाओ और दूसरो को खिलाओ। परंतु हमें वेद मन्त्रों की गहराइयों को पिछले युगों की भांति विद्वानों से स्वयं समझकर सबको समझाना होगा जैसे ऊपर मंत्रों में कहा है मेहतनकश किसान अन्न को उपजाकर सबको खिलाएं, सभी की भूख मिटाएं इसलिए एक तरह से किसान अन्नदाता हुआ और अथर्ववेद मंत्र 20/35/12 में कहा कि जैसे किसान पृथ्वी को जोतकर, घास काटकर, अन्न उत्पन्न करके देश की जनता को सुख देता है वैसे ही राजा दुष्टों का नाश करके किसान एवं प्रजा को सुखी करे। भाव यह है कि एक हाथ से ताली कभी नहीं बजती। देश के किसानों की मजबूरी है कि यदि वह अन्न नहीं उगाएगा तो उसका परिवार और देश की जनता भूखी रह जाएगी। अत: आज भी अनेक समस्याओं में उलझा हुआ किसान अन्न को उपजा ही रहा है।
विपरित में आज हालात यह है कि उच्च पद पर आसीन अधिकारी और उससे भी स्वयं को ऊंचा मानने वाला देश का राजा और नेतागण सभी भूख से बिलखते नहीं। किसी और वस्तु का अभाव उन्हें सताता नहीं है और भारतीय वैदिक संस्कृति को वैसे ही कुचल दिया गया है। तब अधिकारीगण एवं सरकार बेबस किसानों की परेशानियों को क्यों समझेगी। ऊपरलिखित मंत्र के मनन करने पर यह तथ्य स्पष्ट होता है कि ईश्वर ने कृषक, कृषि एवं योगी को एक ही श्रेणी में रखा है। अर्थात् कृषक द्वारा उत्पन्न अन्न के बिना कोई योग सिद्ध नहीं हो सकता और वेदाअध्ययन एवं योग सिद्धी के अभाव में उत्तम कृषि की व्यवस्था नहीं हो सकती। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
अब ऐसे महान मेहनतकश किसानों की जरुरतों को नजरअंदाज करके सरकार दिन-प्रतिदिन महापापों की भागीदार बनती जा रही है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रीगण तन, मन, धन, प्राण तक की बाजी लगाकर तथा करोड़ों अरबों रुपए खर्च करके योग दिवस में लीन हो जाते हैं। परंतु अन्न, सब्जी, दूध, घी, मक्खन आदि जो योगाभ्यास में अति आवश्यक है उन पदार्थों को उत्पन्न करने वाले देश के योग सिद्ध पुरुष किसानों को नजरअंदाज करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते। सूरदास जी ने भी एक जगह स्पष्ट किया है
”भूखे भजन होए ना गोपाला
ये ले अपनी कंठी माला”
एक बार एक मच्छियारन पुष्प बेचने वाली के घर चली गई परंतु रात्रि में उसे नींद नहीं आई। वह उठकर अपनी झोपड़ी पर पहुंची जहां मछलियों की गंदगी और बदबू फैली हुई थी। वहां उसने अपना बिस्तर लगाया और बड़े आनंद और शांति से सो गई। कारण स्पष्ट है कि उसे फूलों की खुशबू नहीं अपितु प्रतिदिन ऐसी गंदगी में सोने का अभ्यास था। इसी प्रकार आजादी के बाद सभी सरकारों को कुर्सी हथियाने का तथा जनता की परेशानियों की रैली, किसानों की आह दर्द भरी आवाजों को सुनने का अभ्यास है और सरकार इन आवाजों को सुनकर बंद कमरों में ए.सी. लगाकर आराम से रह जाती है।
अथर्ववेद 6/91/1 में स्पष्ट किया है कि इस भूमि में बैलों को पीडि़त न करके अन्न उत्पन्न किया जाता है। वह अन्न मनुष्य के रोगों को दूर करता है। आजादी के बाद आज तक सरकार ने न किसानों और न उनके परिवारों के सुख की तरफ ध्यान दिया और न ही अन्न उपजाने वाले बैलों को पोष्टिक आहार आदि देने पर ध्यान दिया। परंतु विपरित में गरीब किसानों द्वारा कर्जे पर लिए हुए 10 साल पुराने ट्रैक्टरों को बंद करके सरकार न जाने कौन सा पुण्य कमाने की तैयारी कर रही है। किसानों की रैली में बूढ़े, तरुण, बच्चे, नारी आदि सभी होते हैं। ऐसे असहाय पर पुलिस द्वारा लाठी प्रहार, पानी की बौछार, आंसु गैस के गोलों का प्रयोग करना कहां तक उचित है?
वेदों में राजा-सरकार को स्पष्ट निर्देश हैं कि वह किसानों की सुरक्षा उनकी देखभाल और उनके खेतों को हिंसक पशुओं से बचाने में कभी भी कोई ढील नहीं दें परंतु यू.पी. में नील गाय, अन्य हिंसक पशु, हिमाचल और अन्य स्थानों पर बंदरों आदि ने जो खेती का नुक्सान किया है उसके हर्जाने की बात किसान सरकार से कैसे कहे। सरकार तो कुछ भी सुनती ही नहीं है। बस प्रत्येक राजनीति दल एक-दूसरे पर छिंटाकशी करके अपने आप को सौभाग्यशाली समझता है। वोट बटोरने की राजनीति को चलाता है जिससे किसानों के साथ-साथ संपूर्ण देश की जनता भी आश्चर्यचकित एवं परेशान हैं। सरकार से हमारी गुजारिश है कि किसानों की प्रत्येक समस्या का शीघ्र अति शीघ्र समाधान करें अन्यथा देश में कहीं भीषण अकाल न पड़ जाए।